मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

सिंगापूर मे आजाद हिंद फ़ौज के सामने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का दिया गया एतिहासिक भाषण .


नई दिल्ली, 22 जनवरी। सन् 1941 में कोलकाता से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपनी नजरबंदी से भागकर ठोस स्थल मार्ग से जर्मनी पहुंचे, जहां उन्होंने भारत सेना का गठन किया। जर्मनी में कुछ कठिनाइयां सामने आने पर जुलाई 1943 में वे पनडुब्बी के जरिए सिंगापुर पहुंचे। सिंगापुर में उन्होंने आजाद हिंद सरकार (जिसे नौ धुरी राष्ट्रों ने मान्यता प्रदान की) और इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया। मार्च एवं जून 1944 के बीच इस सेना ने जापानी सेना के साथ भारत-भूमि पर ब्रिटिश सेनाओं का मुकाबला किया। यह अभियान अंत में विफल रहा, परंतु बोस ने आशा का दामन नहीं छोड़ा। जैसा कि यह भाषण उद्घाटित करता है, उनका विश्वास था कि ब्रिटिश युद्ध में पीछे हट रहे थे और भारतीयों के लिए आजादी हासिल करने का यही एक सुनहरा अवसर था। यह शायद बोस का सबसे प्रसिद्ध भाषण है। इंडियन नेशनल आर्मी के सैनिकों को प्रेरित करने के लिए आयोजित सभा में यह भाषण दिया गया, जो अपने अंतिम शक्तिशाली कथन के लिए प्रसिद्ध है। 


दोस्तों! बारह महीने पहले पूर्वी एशिया में भारतीयों के सामने 'संपूर्ण सैन्य संगठन' या 'अधिकतम बलिदान' का कार्यक्रम पेश किया गया था। आज मैं आपको पिछले साल की हमारी उपलब्धियों का ब्योरा दूंगा तथा आने वाले साल की हमारी मांगें आपके सामने रखूंगा। परंतु ऐसा करने से पहले मैं आपको एक बार फिर यह एहसास कराना चाहता हूं कि हमारे पास आजादी हासिल करने का कितना सुनहरा अवसर है। अंग्रेज एक विश्वव्यापी संघर्ष में उलझे हुए हैं और इस संघर्ष के दौरान उन्होंने कई मोर्चो पर मात खाई है। इस तरह शत्रु के काफी कमजोर हो जाने से आजादी के लिए हमारी लड़ाई उससे बहुत आसान हो गई है, जितनी वह पांच वर्ष पहले थी। इस तरह का अनूठा और ईश्वर-प्रदत्त अवसर सौ वर्षो में एक बार आता है। इसीलिए अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश दासता से छुड़ाने के लिए हमने इस अवसर का पूरा लाभ उठाने की कसम खाई है। 

हमारे संघर्ष की सफलता के लिए मैं इतना अधिक आशावान हूं, क्योंकि मैं केवल पूर्व एशिया के 30 लाख भारतीयों के प्रयासों पर निर्भर नहीं हूं। भारत के अंदर एक विराट आंदोलन चल रहा है तथा हमारे लाखों देशवासी आजादी हासिल करने के लिए अधिकतम दु:ख सहने और बलिदान देने के लिए तैयार हैं। दुर्भाग्यवश, सन् 1857 के महान् संघर्ष के बाद से हमारे देशवासी निहत्थे हैं, जबकि दुश्मन हथियारों से लदा हुआ है। आज के इस आधुनिक युग में निहत्थे लोगों के लिए हथियारों और एक आधुनिक सेना के बिना आजादी हासिल करना नामुमकिन है। ईश्वर की कृपा और उदार नियम की सहायता से पूर्वी एशिया के भारतीयों के लिए यह संभव हो गया है कि एक आधुनिक सेना के निर्माण के लिए हथियार हासिल कर सकें। 

इसके अतिरिक्त, आजादी हासिल करने के प्रयासों में पूर्वी एशिया के भारतीय एकसूत्र में बंधे हुए हैं तथा धार्मिक और अन्य भिन्नताओं का, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने भारत के अंदर हवा देने की कोशिश की, यहां पूर्वी एशिया में नामोनिशान नहीं है। इसी के परिणामस्वरूप आज परिस्थितियों का ऐसा आदर्श संयोजन हमारे पास है, जो हमारे संघर्ष की सफलता के पक्ष में है - अब जरूरत सिर्फ इस बात की है कि अपनी आजादी की कीमत चुकाने के लिए भारती स्वयं आगे आएं। 'संपूर्ण सैन्य संगठन' के कार्यक्रम के अनुसार मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की मांग की थी। जहां तक जवानों का संबंध है, मुझे आपको बताने में खुशी हो रही है कि हमें पर्याप्त संख्या में रंगरूट मिल गए हैं। हमारे पास पूर्वी एशिया के हर कोने से रंगरूट आए हैं - चीन, जापान, इंडोचीन, फिलीपींस, जावा, बोर्नियो, सेलेबस, सुमात्रा, मलाया, थाईलैंड और बर्मा से। 

आपको और अधिक उत्साह एवं ऊर्जा के साथ जवानों, धन तथा सामग्री की व्यवस्था करते रहना चाहिए, विशेष रूप से आपूर्ति और परिवहन की समस्याओं का संतोषजनक समाधान होना चाहिए। हमें मुक्त किए गए क्षेत्रों के प्रशासन और पुनर्निर्माण के लिए सभी श्रेणियों के पुरुषों और महिलाओं की जरूरत होगी। हमें उस स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसमें शत्रु किसी विशेष क्षेत्र से पीछे हटने से पहले निर्दयता से 'घर-फूंक नीति' अपनाएगा तथा नागरिक आबादी को अपने शहर या गांव खाली करने के लिए मजबूर करेगा, जैसा उन्होंने बर्मा में किया था। सबसे बड़ी समस्या युद्धभूमि में जवानों और सामग्री की कुमुक पहुंचाने की है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम मोर्चो पर अपनी कामयाबी को जारी रखने की आशा नहीं कर सकते, न ही हम भारत के आंतरिक भागों तक पहुंचने में कामयाब हो सकते हैं। 

आपमें से उन लोगों को, जिन्हें आजादी के बाद देश के लिए काम जारी रखना है, यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वी एशिया - विशेष रूप से बर्मा - हमारे स्वातंय संघर्ष का आधार है। यदि यह आधार मजबूत नहीं है तो हमारी लड़ाकू सेनाएं कभी विजयी नहीं होंगी। याद रखिए कि यह एक 'संपूर्ण युद्ध है - केवल दो सेनाओं के बीच युद्ध नहीं है। इसलिए, पिछले पूरे एक वर्ष से मैंने पूर्व में 'संपूर्ण सैन्य संगठन' पर इतना जोर दिया है। मेरे यह कहने के पीछे कि आप घरेलू मोर्चे पर और अधिक ध्यान दें, एक और भी कारण है। आने वाले महीनों में मैं और मंत्रिमंडल की युद्ध समिति के मेरे सहयोगी युद्ध के मोरचे पर-और भारत के अंदर क्रांति लाने के लिए भी - अपना सारा ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। इसीलिए हम इस बात को पूरी तरह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आधार पर हमारा कार्य हमारी अनुपस्थिति में भी सुचारु रूप से और निर्बाध चलता रहे। साथियों एक वर्ष पहले, जब मैंने आपके सामने कुछ मांगें रखी थीं, तब मैंने कहा था कि यदि आप मुझे 'संपूर्ण सैन्य संगठन' दें तो मैं आपको एक 'एक दूसरा मोरचा' दूंगा। मैंने अपना वह वचन निभाया है। हमारे अभियान का पहला चरण पूरा हो गया है। हमारी विजयी सेनाओं ने निप्योनीज सेनाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शत्रु को पीछे धकेल दिया है और अब वे हमारी प्रिय मातृभूमि की पवित्र धरती पर बहादुरी से लड़ रही हैं। 

अब जो काम हमारे सामने हैं, उन्हें पूरा करने के लिए कमर कस लें। मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की व्यवस्था करने के लिए कहा था। मुझे वे सब भरपूर मात्रा में मिल गए हैं। अब मैं आपसे कुछ और चाहता हूं। जवान, धन और सामग्री अपने आप विजय या स्वतंत्रता नहीं दिला सकते। हमारे पास ऐसी प्रेरक शक्ति होनी चाहिए, जो हमें बहादुर व नायकोचित कार्यो के लिए प्रेरित करें। सिर्फ इस कारण कि अब विजय हमारी पहुंच में दिखाई देती है, आपका यह सोचना कि आप जीते-जी भारत को स्वतंत्र देख ही पाएंगे, आपके लिए एक घातक गलती होगी। यहां मौजूद लोगों में से किसी के मन में स्वतंत्रता के मीठे फलों का आनंद लेने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। एक लंबी लड़ाई अब भी हमारे सामने है। आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिए - मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत करने की इच्छा, जिससे स्वतंत्रता की राह शहीदों के खून बनाई जा सके। साथियों, स्वतंत्रता के युद्ध में मेरे साथियो! आज मैं आपसे एक ही चीज मांगता हूं, सबसे ऊपर मैं आपसे अपना खून मांगता हूं। यह खून ही उस खून का बदला लेगा, जो शत्रु ने बहाया है। खून से ही आजादी की कीमत चुकाई जा सकती है। तुम मुझे खून दो और मैं तुम से आजादी का वादा करता हूं।


गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

नशे से मुक्ति कैसे पाएँ?? (get rid of addiction of smoking and alcohal)



मित्रो बहुत से लोग नशा छोडना चाहते है पर उनसे छुटता नहीं है !बार बार वो कहते है हमे मालूम है ये गुटका खाना अच्छा नहीं है लेकिन तलब उठ जाती है तो क्या करे ???
बार बार लगता है ये बीड़ी सिगरेट पीना अच्छा नहीं है लेकिन तलब उठ जाती है तो क्या करे !??
बार बार महसूस होता है यह शाराब पीना अच्छा नहीं है लेकिन तलब हो जाती है तो क्या करे ! ????
तो आपको बीड़ी सिगरेट की तलब न आए गुटका खाने के तलब न लगे ! शारब पीने की तलब न लगे ! इसके लिए बहुत अच्छे दो उपाय है जो आप बहुत आसानी से कर सकते है ! पहला ये की जिनको बार बार तलब लगती है जो अपनी तलब पर कंट्रोल नहीं कर पाते नियंत्रण नहीं कर पाते इसका मतलब उनका मन कमजोर है ! तो पहले मन को मजबूत बनाओ!
मन को मजबूत बनाने का सबसे आसान उपाय है पहले थोड़ी देर आराम से बैठ जाओ ! आलती पालती मर कर बैठ जाओ ! जिसको सुख आसन कहते हैं ! और फिर अपनी आखे बंद कर लो फिर अपनी दायनी(right side) नाक बंद कर लो और खाली बायी(left side) नाक से सांस भरो और छोड़ो ! फिर सांस भरो और छोड़ो फिर सांस भरो और छोड़ो !
बायीं नाक मे चंद्र नाड़ी होती है और दाई नाक मे सूर्य नाड़ी ! चंद्र नाड़ी जितनी सक्रिये (active) होगी उतना इंसान का मन मजबूत होता है ! और इससे संकल्प शक्ति बढ़ती है ! चंद्र नाड़ी जीतने सक्रिये होती जाएगी आपकी मन की शक्ति उतनी ही मजबूत होती जाएगी ! और आप इतने संकल्पवान हो जाएंगे ! और जो बात ठान लेंगे उसको बहुत आसानी से कर लेगें ! तो पहले रोज सुबह 5 मिनट तक नाक की right side को दबा कर left side से सांस भरे और छोड़ो ! ये एक तरीका है ! और बहुत आसन है !
दूसरा एक तरीका है आपके घर मे एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसको आप सब अच्छे से जानते है और पहचानते हैं ! राजीव भाई ने उसका बहुत इस्तेमाल किया है लोगो का नशा छुड्वने के लिए ! और उस ओषधि का नाम है अदरक ! और आसानी से सबके घर मे होती है ! इस अदरक के टुकड़े कर लो छोटे छोटे उस मे नींबू निचोड़ दो थोड़ा सा काला नमक मिला लो और इसको धूप मे सूखा लो ! सुखाने के बाद जब इसका पूरा पानी खतम हो जाए तो इन अदरक के टुकड़ो को अपनी जेब मे रख लो ! जब भी दिल करे गुटका खाना है तंबाकू खाना है बीड़ी सिगरेट पीनी है ! तो आप एक अदरक का टुकड़ा निकालो मुंह मे रखो और चूसना शुरू कर दो ! और यह अदरक ऐसे अदबुद चीज है आप इसे दाँत से काटो मत और सवेरे से शाम तक मुंह मे रखो तो शाम तक आपके मुंह मे सुरक्षित रहता है ! इसको चूसते रहो आपको गुटका खाने की तलब ही नहीं उठेगी ! तंबाकू सिगरेट लेने की इच्छा ही नहीं होगी शराब पीने का मन ही नहीं करेगा !
बहुत आसन है कोई मुश्किल काम नहीं है ! फिर से लिख देता हूँ !
अदरक के टुकड़े कर लो छोटे छोटे उस मे नींबू निचोड़ दो थोड़ा सा काला नमक मिला लो और इसको धूप मे सूखा लो ! सुखाने के बाद जब इसका पूरा पानी खतम हो जाए तो इन अदरक के टुकड़ो को अपनी जेब मे रख लो ! डिब्बी मे रखो पुड़िया बना के रखो जब तलब उठे तो चूसो और चूसो !
जैसे ही इसका रस लाड़ मे घुलना शुरू हो जाएगा आप देखना इसका चमत्कारी असर होगा आपको फिर गुटका तंबाकू शराब बीड़ी सिगरेट आदि की इच्छा ही नहीं होगी ! सुबह से शाम तक चूसते रहो ! और 10 -15 -20 दिन लगातार कर लिया ! तो हमेशा के लिए नशा आपका छूट जाएगा !
आप बोलेगे ये अदरक मैं ऐसे क्या चीज है !????
यह अदरक मे एक ऐसे चीज है जिसे हम रसायनशास्त्र (क्मिस्ट्री) मे कहते है सल्फर !
अदरक मे सल्फर बहुत अधिक मात्रा मे है ! और जब हम अदरक को चूसते है जो हमारी लार के साथ मिल कर अंदर जाने लगता है ! तो ये सल्फर जब खून मे मिलने लगता है ! तो यह अंदर ऐसे हारमोनस को सक्रिय कर देता है ! जो हमारे नशा करने की इच्छा को खत्म कर देता है !
और विज्ञान की जो रिसर्च है सारी दुनिया मे वो यह मानती है की कोई आदमी नशा तब करता है ! जब उसके शरीर मे सल्फर की कमी होती है ! तो उसको बार बार तलब लगती है बीड़ी सिगरेट तंबाकू आदि की ! तो सल्फर की मात्रा आप पूरी कर दो बाहर से ये तलब खत्म हो जाएगी ! इसका राजीव भाई ने हजारो लोगो पर परीक्षण किया और बहुत ही सुखद प्रणाम सामने आए है ! बिना किसी खर्चे के शराब छूट जाती है बीड़ी सिगरेट शराब गुटका आदि छूट जाता है ! तो आप इसका प्रयोग करे !
और इसका दूसरे उपयोग का तरीका पढे !
अदरक के रूप मे सल्फर भगवान ने बहुत अधिक मात्रा मे दिया है ! और सस्ता है! इसी सल्फर को आप होमिओपेथी की दुकान से भी प्राप्त कर सकते हैं ! आप कोई भी होमिओपेथी की दुकान मे चले जाओ और विक्रेता को बोलो मुझे सल्फर नाम की दावा देदो ! वो देदेगा आपको शीशी मे भरी हुई दावा देदेगा ! और सल्फर नाम की दावा होमिओपेथी मे पानी के रूप मे आती है प्रवाही के रूप मे आती है जिसको हम Dilution कहते है अँग्रेजी मे !
तो यह पानी जैसे आएगी देखने मे ऐसे ही लगेगा जैसे यह पानी है ! 5 मिली लीटर दवा की शीशी 5 रूपये आती है ! और उस दवा का एक बूंद जीभ पर दाल लो सवेरे सवेरे खाली पेट ! फिर अगले दिन और एक बूंद डाल लो ! 3 खुराक लेते ही 50 से 60 % लोग की दारू छूट जाती है ! और जो ज्यादा पियाकड़ है !जिनकी सुबह दारू से शुरू होती है और शाम दारू पर खतम होती है ! वो लोग हफ्ते मे दो दो बार लेते रहे तो एक दो महीने तक करे बड़े बड़े पियकरों की दारू छूट जाएगी !राजीव भाई ने ऐसे ऐसे पियकारों की दारू छुड़ाई है ! जो सुबह से पीना शुरू करते थे और रात तक पीते रहते थे ! उनकी भी दारू छूट गई बस इतना ही है दो तीन महीने का समय लगा !
तो ये सल्फर अदरक मे भी है ! होमिओपेथी की दुकान मे भी उपलब्ध है ! आप आसानी से खरीद सकते है !लेकिन जब आप होमिओपेथी की दुकान पर खरीदने जाओगे तो वो आपको पुछेगा कितनी ताकत की दवा दूँ ??!
मतलब कितनी Potency की दवा दूँ ! तो आप उसको कहे 200 potency की दवा देदो ! आप सल्फर 200 कह कर भी मांग सकते है ! लेकिन जो बहुत ही पियकर है उनके लिए आप 1000 Potency की दवा ले !आप 200 मिली लीटर का बोतल खरीद लो एक 150 से रुपए मे मिलेगी ! आप उससे 10000 लोगो की शराब छुड़वा सकते हैं ! मात्र एक बोतल से ! लेकिन साथ मे आप मन को मजबूत बनाने के लिए रोज सुबह बायीं नाक से सांस ले ! और अपनी इच्छा शक्ति मजबूत करे !!!
अब एक खास बात !
बहुत ज्यादा चाय और काफी पीने वालों के शरीर मे arsenic तत्व की कमी होती है !
उसके लिए आप arsenic 200 का प्रयोग करे !

गुटका,तंबाकू,सिगरेट,बीड़ी पीने वालों के शरीर मे phosphorus तत्व की कमी होती है !
उसके लिए आप phosphorus 200 का प्रयोग करे !

और शराब पीने वाले मे सबसे ज्यादा sulphur तत्व की कमी होती है !
उसके लिए आप sulphur 200 का प्रयोग करे !!

सबसे पहले शुरुवात आप अदरक से ही करे !!
आपने पूरी पोस्ट पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !
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बुधवार, 10 अप्रैल 2013

हिन्दू नव वर्ष की शुभकामनायें ( HINDU NEW YEAR)



आज कल लिखना लिखाना कम हो गया है नौकरी से तो फुर्सत निकाल लेता हूँ मगर अब विचारधारा के लिए धरातल पर काम कर रहा हूँ अतः समय  से जंग चलती रहती है ..कभी कभी लगता है की एक जीवन कम है जितने काम हमे करने हैं..कल नव वर्ष है तो सोचा बधाइयाँ देता चलूँ..शायद आज के वर्तमान परिवेश में इस त्यौहार को लोग भूलते जा रहे हैं इसपर कुछ साल पहले एक लेख लिखा था कुछ थोड़े बहुत संपादन के बाद उसे ही लिख रहा हूँ.. 

हमारी वर्तमान मान्यताएं और आज का भारतीय : वर्तमान परिवेश में पश्चिम का अन्धानुकरण करते हुए हम ३१ दिसम्बर की रात को कडकडाती हुए ठण्ड में नव वर्ष काँप काँप कर मानतें है..पटाके फोड़ते है,मिठाइयाँ बाटते हैं और शुभकामना सन्देश भेजते है..कहीं कहीं मास मदिरा तामसी भोजन का प्रावधान भी होता है..अश्लील नृत्य इत्यादि इत्यादि फिर भी हमें ये युक्तिसंगत लगता है..

विश्व में हजारों सभ्यताएं हुई हैं और हजारों पद्धतियाँ है सबकी अपनी अपनी.. शायद ३१ दिसम्बर की रात या १ जनवरी को नव वर्ष मनाने का कोई वैज्ञानिक आधार हो, मगर मैंने आज तक नहीं देखा... फिर भी ये उनकी अपनी पद्धति है, मगर हमारी दुम हिलाने की आदत गयी नहीं आज तक, शुरू कर देते है पटाके फोड़ना..विडंबना ये है की क्या कभी आप ने किसी अमेरिकी को हिन्दू नव वर्ष मानते देखा है..मैं ये कहना जरुरी समझता हूँ की १ जनवरी को कुछ भी वैज्ञानिक दृष्टि से नवीन नहीं होता मगर फिर भी नव वर्ष होता है..


हिन्दू नव वर्ष कब मनाया जाता है : हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा के प्रथम दिन हिन्दू नव वर्ष मनाया जाता है..ऐसी मान्यता है की सतयुग का प्रथम दिन भी इसी दिन शुरू हुआ था..एक अन्य मान्यता के अनुसार ब्रम्हा ने इसी दिन सृष्टि का सृजन शुरू किया था..भारत के कई हिस्सों में गुडी पड़वा या युगादी  पर्व मनाया जाता है.इस दिन घरों को हरे पत्तों से सजाया जाता है और हरियाली चारो और दृष्टीगोचर होती है.

इस वर्ष पश्चिमी कलेंडर के अनुसार ये वर्ष 11 अप्रैल 2013  को शुरू होगा..चलिए ये तो रही मान्यताएं और इतिहास की बातें अब कुछ वैज्ञानिक तथ्यों को भी जान लें..


हिन्दू नव वर्ष के वैज्ञानिक तथ्य:


१ चैत्र माह मतलब हिन्दू नव वर्ष के शुरू होते ही रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते है..

२ पेड़ों पर नवीन पत्तियों और कोपलों का आगमन होता है..पतझड़ ख़तम होता है और बसंत की शुरुवात होती है..

३ प्रकृति में हर जगह हरियाली छाई होती है प्रकृति का नवश्रृंगार होता है..

४ धर्म को मानने वाले लोग पूजा पाठ करते है मंदिर जातें है नदी स्नान करतें है..

५ भास्कराचार्य ने इसी दिन को आधार रखते हुए गड़ना कर पंचांग की रचना की.

५ हमारे हिन्दुस्थान में सभी वित्तीय संस्थानों का नव वर्ष अप्रैल से प्रारम्भ होता है .


आप ही सोचे क्या जनवरी के माह में ये नवीनता होती है नहीं तो फिर नव वर्ष कैसा..शायद किसी और देश में जनवरी में बसंत आता हो तो वो जनवरी में नव वर्ष हम क्यूँ मनाये???


वर्तमान में एक कुप्रथा चली है  मुर्ख दिवस मानाने की वो भी हिन्दू नव वर्ष के शुरुवात में और बौधिक गुलाम लोग  सबको अप्रैल फूल बनाते हैं.अर्थात अंग्रेजो और पश्चिम ने ये सुनिश्चित कर दिया है तुम मुर्ख हो और खुद के भाई बहनों को नव वर्ष में शुभकामना सन्देश भेजने की बजाय मुर्ख कहो और मुर्ख बनाओ और मुर्ख रहो..इसी का परिणाम है की आजादी के वर्षों बाद भी हमारी बौधिक गुलामी नहीं गयी जिस नव वर्ष को हमे पूजा पाठ और खुशहाली से मनाना चाहिए उस दिन हम एक दुसरे की मुर्खता का उपहास करते हैं...


चलिए आप सभी को नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें आशा करूँगा की ये नव वर्ष आप सभी के जीवन में अपार हर्ष और खुशहाली ले कर आये..  हिन्दू पंचांग महीनो के नाम और पश्चिम में कैलेंडर में उस माह का अनुवाद
चैत्र--- मार्च-अप्रैल
वैशाख--- अप्रैल-मई
ज्येष्ठ---- मई-जून
आषाढ--- जून-जुलाई
श्रावण--- जुलाई - अगस्त
भाद्रपद--- अगस्त -सितम्बर
अश्विन्--- सितम्बर-अक्टूबर
कार्तिक--- अक्टूबर-नवम्बर
मार्गशीर्ष-- नवम्बर-दिसम्बर
पौष----- दिसम्बर -जनवरी
माघ---- जनवरी -फ़रवरी
फाल्गुन-- फ़रवरी-मार्च


अब क्रिकेट की कुछ क्रिकेट के दीवानों लिए: भारतीय टीम के दो सदस्यों के नामआश्विन एवं कार्तिक भी  हिंदी महीनो के नाम पर है,किसी क्रिकेटर का नाम है क्या भारतीय क्रिकेट टीम में अगस्त सितम्बर या जुलाई ??


नव वर्ष मंगल मय हो...