दिनांक 14/01/2013, सुबह ग्यारह बजे के करीब जामा मस्जिद
के चूड़ीवालान इलाके में सात कारखानों में छापा मार कर पुलिस बल ने लगभग 33बाल मजदूरों
को बरामद किया और इन सभी 7 कारखानों को सील लगा कर बंद किया तथा कारखाना मालिकों को
गिरफ्तार किया गया। इस कार्यवाही में पुलिस के साथ ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ नामक एन जी
ओ के कार्यकर्ता भी शामिल बताये जाते हैं। पुलिस कार्यवाही के होते ही गिरफ्तार कर्खान्दारों
ने इमाम अहमद बुखारी की शरण ली और पुलिस कार्यवाही से बचाने के लिए उनको मौके पर ले
आये। इमाम बुखारी ने बल श्रम विभाग की इस कार्यवाही के खिलाफ उसी वक़्त जमा मस्जिद
के लाउड स्पीकर से पुलिस को ललकारा, और ऐलानिया इस कार्यवाही को मुसलमानों पर ज़ुल्म
बताया, कानून को चुनौती दी की ‘हमारे इलाके में घुस कर ये जालिमाना हरकत करने की जुर्रत
कैसे की गई? ” इसके बाद इमाम बुखारी उस ही वक़्त मौके पर गए और अपने हाथ से, सातों
दुकानों पर, पुलिस द्वारा लगाई सील तोड़ी। इसके बाद कारखाना मालिकों को भी पुलिस थाने
से ही छुड़वा लिया गया और 33 में से 12 बाल श्रमिक व्यस्क बताये गए लिहाज़ा 21 बल श्रमिकों
को अभी भी पुलिस की हिफाज़त में ही रखा गया है।
इस घटना ने व्यवस्था की चरमराहट को कई जगह से ज़ाहिर
किया है। सबसे पहले तो ये की पुरानी दिल्ली कारखानों और कारोबार का केंद्र है जहाँ
खुलेआम बाल श्रमिक काम पर लगाये गए हैं, ऐसी स्तिथि में जहाँ खुद कारखाना मालिकों के
अपने बच्चे भी बाल श्रम कर रहे हैं क्यूंकि ये बहोत ग़रीब वर्ग के कारखाने हैं जहाँ
कारोबार में मार्जिन इतना नहीं की पूरी तनख्वाह पर श्रमिक को अनुबंधित किया जा सके,
दूसरे ये की कानूनों में हुई तब्दीलियों से भी ये वर्ग वाकिफ नहीं क्यूँ की ये मालिक
खुद भी अशिक्षित हैं। तीसरे ये, कि ये लगभग पुश्तैनी कारखाने हैं जहाँ दशकों से यही
व्यवस्था चली आ रही है।
ऐसे में बाल श्रम विभाग किसी भी तरह का जागरूकता
कार्यक्रम कभी क्यूँ नहीं चलाता ? क्यूँ पुरानी दिल्ली की इन गलियों में जहाँ कारखानों
की भरमार है एक भी पोस्टर, बैनर, होर्डिंग नज़र नहीं आता जो बाल श्रम के प्रति जागरूकता
पैदा करे। हालत ये है की इन बच्चों से मजदूरी करवाने वाले मालिक इस भाव से इन्हें काम
पर रखते है मानो वो इन पर अहसान कर रहे हों ‘काम सिखा कर’. ये श्रमिक भी ऐसे ही कृतार्थ
भाव से जो मिल जाता है वो रख लेते हैं। इन हालात में ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ जैसे एन जी
ओ की देख रेख में सीधे छापा मार कार्यवाही की जगह विभाग खुद एक जागरूकता और वार्निंग
से शुरुआत करता तो अच्छा रहता। क्यूंकि ज़मीनी हकीकत यही है की खुद कारखाना मालिक भी
ग़रीब, अनपढ़ और ठेकेदारों के शोषण का शिकार है जो मार्किट मेकेनिज्म को न समझने के
कारण कम मुनाफे पर अपना उत्पादन बिचौलियों को दे रहे हैं। ये भी की ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’
अब लगभग कुख्यात हो चुका है ऐसे मामलों में पुलिस/आई ओ के साथ मिल कर सौदे बाज़ी करने
के लिए। ऐसे में इतने महत्वपूर्ण कानून को एन जी ओ के ज़रिये नहीं बल्कि मंत्रालय द्वारा
खुद के स्क्वाड या दस्ते बना कर लागू करना ज्यादा बेहतर होगा।
लेकिन सबसे चिंताजनक पहलू है इमाम अहमद बुखारी का
ये कहना की ‘हमारे इलाके में घुस कर ये कार्यवाही करने की हिम्मत कैसे हुई‘. इमाम अहमद
बुखारी अगर कारखाना मालिकों को राहत ही दिलाना चाहते थे तो कम से कम उन्हें इस बात
का अहसास तो करवाने की ज़रुरत थी ही की यह एक अपराधिक ग़लती है, जो दोबारा नहीं होनी
चाहिए, और इसी शर्त पर उन्हें कानून से कोई राहत मिल सकती है। पुलिस द्वारा तकमील की
गई कार्यवाही को इस तरह अपने अहंकार और अराजकता के आगे रौंदना सिर्फ ये बताता है की
इस शख्स के लिए देश के कानून की कोई कद्र नहीं। मुस्लिम इलाकों को कानून के दायरे से
बाहर रख कर ये शख्स गुंडा-गर्दी, रंगदारी आधारित अपनी सत्ता चलाना चाहता है। फिर इमाम
का राज ‘मातोश्री‘ के राज से किस तरह अलग है ? क्या पत्रकार बिरादरी पुलिस के आला अधिकारीयों
से इमाम की इस हरकत पर सवाल करेगी? खुद हमने ये कोशिश की थी अभी अभी, लेकिन कोई जवाब
नहीं मिला सिवा इसके कि पुलिस क्या करे ?
इस रिपोर्ट को फ़ाइल करने वाले पत्रकार फरहान याहया
को आज सुबह से ही गाली-धमकी भरे फोन काल्स आ रहे हैं। एक कालर ने काफी सीरियस धमकियाँ
दी। जिसकी वजह से उन्हें पुलिस स्टेशन का रूख करना पडा अभी आधा दिन भी नहीं बीता है
और उनका जीना हराम कर दिया गया है। एक पहलु यह भी है कि फरहान साहब इसी इलाके में सपरिवार
रहते हैं। आप समझ सकते हैं, उन पर किस तरह का खतरा है, ऐसे में जब ताकतवर हिंदी-उर्दू
मीडिया ने जोखिम नहीं उठाया, एक उर्दू अखबार और सहाफी की हिम्मत को हमें बढ़ाना चाहिए।
{ नोट : अभी तक मेनस्ट्रीम मीडिया में इस खबर को
कोई जगह नहीं दी गयी है इसलिए यह समाचार -विश्लेषण शीबा अशलम फहमी के फेसबुक वाल से
साभार प्रकाशित किया गया है } :जनोक्ति डाट काम