We owe a lot to the Indians, who taught us how to count, without
which no worthwhile scientific discovery could have been made.
-Albert Einstein
हम भारतियों के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेंगे जिन्होंने हमें गणना करना सिखाया, उसके बिना किसी वैज्ञानिक आविष्कार का होना संभव नहीं था।
-अलबर्ट आइन्स्टीन
If there is one place on the face of earth where all dreams of
living men have found a home from the very earliest days when man began the
dream of existence, it is India.
-French scholar Romain Rolland
अगर दुनिया में ऐसा कोई स्थान है, जिसे मानव के उन सारे सपनों का घर कहा जाये,जो सपने
मानव बहुत शुरुआत से अस्तित्व
के लिए देखा करता था, तो वो स्थान है भारत।
-फ़्रांसीसी विद्वान् रोमेन रोलांड
हड़प्पा-मोहनजोदारो सभ्यता के साथ इतिहास में जिस सभ्यता का वर्णन आता है वो है आर्य-सभ्यता। आर्य मूल भारतीय थे या फिर मध्य एशिया से आये थे, ये अभी भी शोध का विषय बना हुआ है। लेकिन आर्यों की मौलिकता के बारे में महर्षि दयानंद सरस्वती के द्वारा प्रस्तुत किये गए तथ्य काफी तर्कसंगत लगते हैं। ये वो समय था जब यूरोपीय देशों के
लोग जंगलों में घुमन्तु की जिन्दगी जी रहे थे, पूरी
दुनिया अज्ञानता के अँधेरे में सोयी हुयी थी, उस समय
भारत के लोग ऐसी कार्यशालाओं का व्यापार (Trade
of workshops) चला रहे थे जिसमें धातु-निष्कर्षण (Mettalurgy), वस्त्र रंजन (Dyeing of Fabric), औषधि-निर्माण
(Drugs Formation), शल्य-चिकित्सा (Surgery) जैसे काम हुआ करते थे।
आर्यों के जीवन का मूल आधार थे 'वेद'.
वेदों को सिर्फ किसी धर्म के धर्म-ग्रन्थ मान लेना बहुत बड़ी गलती होगी।
वेदों की रचना उस समय हुयी थी जब विभिन्न सम्प्रदाय हुआ ही नहीं करते थे।
उस समय केवल एक धर्म था सनातन-मानवता का धर्म।
वेद किसी संप्रदाय-विशेष को आध्यात्मिक ज्ञान देने मात्र के ग्रन्थ नहीं हैं।
वेदों में Physics, Chemistry, Mathematics,
Cosmology, Biology आदि के विषयों पर अथाह सिद्धांत लिखे हुए हैं।
सवाल
ये उठता है की अगर वेदों में इतना ज्ञान है तो ये जग जाहिर क्यों नहीं होता। इसका
कारण है वेदों की अत्यंत जटिल भाषा। वेदों में लिखे टेक्स्ट्स को decode करना कितना मुश्लिक काम
है ये बात दैनिक भाष्कर की 2012 की इस खबर से साफ़ हो
जाता है-Pre-Vedic
India knew about DNA: Indore scholar . आज वेदों को decode करने के लिए कई संस्थाएं
काम कर रही हैं , उनमें से इन्दौर के एक विद्वान् ने वेदों में DNA के वर्णन को सफलतापूर्वक decode करने का दावा किया है।
लेकिन वैदिक भारत के कई विद्वानों ने वेदों के बहुत से श्लोकों को समझ कर उन पर न सिर्फ अपनी भाषा में संहितायें लिखी बल्कि उनको व्यावहारिकता में भी लाया।
यहाँ
पर मैं वैदिक भारत द्वारा किये गए महान वैज्ञानिक आविष्कारों और उनके आविष्कारकों में से कुछ का वर्णन कर
रहा हूँ।
600 ईसा पूर्व (600 BC) कनद ऋषि
ने परमाणु(Atom) का सिद्धांत दिया था। कणद का कथन है कि-
"सभी वस्तुएं परमाणु(Atoms) से बनी हुयी हैं, विभिन्न परमाणु आपस में जुड़ कर
अणु(Molecule) का निर्माण करते हैं"
उन्होंने ये कथन John Dalton से 2500
वर्ष पहले दिया था।
इसके आगे कणद परमाणुओं की Dimensions, गतियों और आपस में रासायनिक अभिक्रियाओं(Chemical
Reactions) का वर्णन करते हैं।
गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत (Law of Gravity):
400-500 ईसा पूर्व भाष्कराचार्य
ने अपनी किताब सूर्य-सिद्धांत में ये कथन लिखा था-
" वस्तुयों का पृथ्वी पे
गिरने का कारण, पृथ्वी द्वारा उन पे लगने वाला आकर्षण बल है। पृथ्वी में ये क्षमता उसके
अत्यधिक गुरुत्व (Mass) के कारण आती है।"
उन्होंने
ये कथन Sir
Issac Newton से
लगभग 1200 वर्ष पहले दिया था।
सूर्य
सिद्धांत में भाष्कराचार्य लिखते हैं-
"पृथ्वी, ग्रह, चंद्रमा, सूर्य आदि इस गुरुत्वाकर्षण के कारण अपने कक्षक में बने रहते हैं"
10वीं सदी में नागार्जुन ने अपनी किताब रसरत्नाकर Rasaratnanakara में बहुत से धातुकर्म विधियों के बारे में लिखा
है जैसे:
- विभिन्न
धातुओं जैसे सोना,चांदी,तम्बा और टिन का उनके अयस्कों (Ores)
से निष्कर्षण।
- द्रवीकरण(liquefaction),आसवन(distillation),उर्ध्वपातन(sublimation)
आदि विधियों का वर्णन।
- विभिन्न
रस (Liquid
Metal) जैसे पारा (Mercury) का निर्माण।
धातुकर्म के क्षेत्र में भारत 5000 वर्षों
से अधिक समय तक विश्व-गुरु रहा है।
सोने के आभूषण 3000 BC से पहले
उपलब्ध थे।कांसे और पीतल के मिले बर्तनों का अनुमान 1300 BC लगाया गया है।
जस्ता (जिंक) को इसके अयस्क (Ore) से
आसवन विधि द्वारा निकालना भारत में 400 BC में ज्ञात था,
European William Campion से 2000 वर्ष पहले।
ताम्बे की मुर्तियों की आयु का अनुमान 500
BC लगाया गया है।
दिल्ली में एक लौह स्तम्भ है जो 400 BC पुराना
है और उस पर आज तक जंग या क्षय का कोई निशान नहीं है।
Bouddhayan: Great mathematician of 600 BC |
पाइथागोरस प्रमेय या बौद्धायन प्रमेय (Pythagorean Theorem or
Baudhayana Theorem):
ईसा
से 6 सदी पूर्व बौद्धायन ने
अपनी किताब बौद्धायन सुल्ब सूत्र में Baudhayana Sulba Sutra में ये कथन लिखा है:
dīrghasyākṣaṇayā
rajjuḥ pārśvamānī, tiryaḍam mānī,
किसी
समकोण त्रिभुज में दीर्घ-अक्ष(Hypotenuse) का वर्ग, रज्जू(Base) और पार्श्ववमिनी(Hight) के वर्ग के योग के बराबर होता है।
पाई π का मान (The Value of Pi π):
बौद्धायन ने वृत की परिधि और व्यास
का अनुपात 3 बताया था।लेकिन उनके बाद 499
AD में आर्यभट्ट ने π के मान
की गणना दशमलव के 4 स्थान तक की (3.1416).
825 AD में एक अरबी गणितज्ञ मुहम्मद इब्ना मूसा
ने ये कहा कि ये मान भारतियों के द्वारा दिया गया है।
शून्य की
अवधारणा (The Concept of 'Zero'):
Zero की अवधारणा शुरूआती संस्कृत लेखों में 'शून्य' के रूप में आती है
और पिंडाला के 'चंदा: सूत्र' (200 AD) में भी समझायी गयी है। भ्रह्मगुप्त के 'ब्रह्म फुता
सिद्धांत' (400 AD) में शून्य को विस्तार से समझाया गया है। भारतीय गणितज्ञ भाष्कराचार्य ने सिद्ध किया की X को 0 से विभाजित करने पर अनंत (Infinty) आता है जिसको फिर
कितना ही विभाजित करें अनंत ही रहता है।
लेकिन शून्य के महत्व के आविष्कार का श्रेय आर्यभट्ट को जाता है।
दशमलव प्रणाली (Decimal System):
दशमलव के आविष्कार का भी मुख्य श्रेय आर्यभट्ट को दिया जाता है।
उन्होने हर गणना का आधार 10 को बनाया
जिस से बड़ी से बड़ी संख्या भी 10 की घात के रूप में आसानी
से व्यक्त की जाने लगीं।
अंग्रेजी का शब्द Geometry संस्कृत के
शब्द 'ज्यामिति' से आया हुआ है।जिसका
अर्थ होता है 'पृथ्वी का मापन'.
इसी तरह से अंग्रेजी का शब्द 'Trignometry' भी संस्कृत के शब्द 'त्रिकोणमिति' से बना है।
युक्लिड का निर्माण 300 BC में
Geometry के अविष्कार के बाद हुआ जबकि भारत में ज्यामिति का उद्भव
1000 BC में ही आग वेदियों (fire altars) के निर्माण से हो गया था "चतुर्भुज
में वर्ग का निर्माण".
सूर्य सिद्धांत में त्रिकोणमिति का प्रखर वर्णन किया है,
जो कि 1200 साल बाद यूरोप में 1600
इसवी में Briggs द्वारा दिया गया।
भाष्कराचार्य ने 1150 AD में अपनी प्रसिद्ध किताब 'सिद्धांता-सिरोमन' लिखी,जिसके चार भाग हैं:
- लीलावती(Arithmetic)
- गोलाध्याय (Celestial Glob)
- बीजगणित
(Treatise
of Algebra)
- ग्रहगणित
(Mathematics
of Planets)
भारत से ही sinƟ funtion 8वीं सदी में अरब में पहुँचा। भारत में sinƟ
को 'ज्या' कहते थे जो कि
अरब में Jiba / Jyb में अनुवादित हो गया। अरबी में Jaib
शब्द का मतलब होता है महिला-पोशाक का गले के पास से खुला होना, Jaib शब्द का लैटिन में
अनुवाद हुआ Sinus, जिसका अर्थ होता है पोशाक में तह या Curve.
और इस प्रकार अंत में Sine (sinƟ) शब्द बना।
10 की घात 53 की गणना (Raising
10 to the Power of 53!):
आज
की गणित में 10 की अधिकतम घात के लिए
उपसर्ग (Prefix) है- 'D' दस की घात 30 (from Greek Deca).
जबकि 100 BC पहेल भारतियों ने 10 की घात 53 तक के लिए सटीक नामों का
आविष्कार कर लिया था।
1= एकं =1, 10 था दशकं , 100 था शतं (10 to
the power of 10), 1000 tha सहस्रं (10 power of 3), 10000 था दशासहस्रम
(10 power of 4), 100000 था लक्शः (10 power of 5), 1000000 था दशालक्शः (10
power of 6), 10000000 था कोटिः (10 power of 7)……विभुतान्गामा
(10 power of 51), तल्लाक्षनाम
(10 power of 53).
word-numeral system, अंक को 10 के गुणांक के रूप में लिखते हुए
आगे बढ़ता है। जैसे संख्या 60799 को संस्कृत में इस तरह लिखते हैं-
"सस्टीम सहस्र सप्त सतानी नवाटीम नवा"
(sastim (60), shsara (thousand), sapta (seven) satani (hundred), navatim (nine
ten times) and nava (nine))
इस system के नियम इस प्रकार है:
1.शुरू के नौ अंकों के नाम-eka, dvi, tri,
catur, pancha, sat, sapta, asta, nava
2.अगले नौ अंको का समूह, उपर्युक्त
प्रत्येक अंक को 10 से गुना करके प्राप्त होता है-dasa,
vimsat, trimsat, catvarimsat, panchasat, sasti, saptati, astiti, navati
3. इसी प्रकार अगला समूह 10 के अगले गुणांक के रूप में
प्राप्त होता है-satam sagasara, ayut, niyuta, prayuta, arbuda, nyarbuda,
samudra, Madhya, anta, parardha….
प्राचीन भारतीय वो पहले लोग थे
जिन्होंने सूर्य के Heliocentric System का सुझाव दिया.
उन्होंने प्रकाश का वेग 1,85,016 miles/sec परिकलित
किया.
उन्होंने पृथ्वी का चन्द्रमा के बीच
की दूरी भी परिकलित की- चन्द्रमा के व्यास का 108 गुना.
पृथ्वी और सूर्य के मध्य दूरी का
अनुमान लगाया- पृथ्वी के व्यास का 108 गुना.
ये सब बातें महान वैज्ञानिक गैलिलिओ से हजारों साल पहले की हैं.
"सस्टीम सहस्र सप्त सतानी नवाटीम नवा"
(sastim (60), shsara (thousand), sapta (seven) satani (hundred), navatim (nine ten times) and nava (nine))
इस system के नियम इस प्रकार है:
पृथ्वी को सूर्य-कक्षा में लगाने वाला समय (Time
taken for Earth to orbit Sun):
भारतीय गणितग्य भाष्कराचार्य ने अपने निबंध सूर्य-सिद्धांत में, पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगने वाले समय का दशमलव के नौंवें स्थान तक सही मान
बताया (365.258756484 दिन).
भाष्कराचार्य के सैकड़ों वर्ष बाद 5वीं में astronomer Smart ने इसी मान की
गणना की।
लेख के अगले भाग मे वेदो के कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण महान आविष्कार
लेखक: दिव्य प्रकाश श्रीवास्तव
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