गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

हिन्दू धर्म मे तिलक लगाने का वैज्ञानिक आधार


शास्त्रों मे तिलक धारण करना एव आवश्यक और धार्मिक कृत्य माना गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार तिलक के बिना तपस्या,पूजन,होम,सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं। हिन्दू धर्म मे तिलक का इतना महत्त्व है की राज्याभिषेक प्रथा का नाम राजतिलक पड़ गया।
इसका वैज्ञानिक आधार ये है की मस्तिष्क  शरीर का संचालन करता है और मस्तिष्क का ऊपरी हिस्सा प्रमस्तिष्क  शरीर मे आने वाले संवेगो
(IMPULSES) और सूचनाओं को ग्रहण करता है और अन्यअंगो को कार्य करने के लिए सूचना भेजता है ॥ प्रमस्तिष्क पर पिट्यूटरी ग्रंथि (pituitary gland)होती है जिससे निकले हार्मोन्स से अन्य कई ग्रंथियों(GLANDS) का संचालन एवं अन्य कई क्रियाओं  का संचालन होता है । दोनों भौहों के बीच “आज्ञाचक्र” होता है आज्ञा चक्र पर तिलक लगाने से मस्तिष्क  का ये हिस्सा शीतल होता है और चन्दन,केसर,कस्तूरी की शीतलता के अलावा सुगंध के कारण प्रसन्नता रहती है। हमारे ज्ञान तंतुओं का विचारक केंद्र भृकुटी और ललाट के मध्य का भाग होता है अधिक काम लेने से इस भाग मे दर्द(वेदना) होने लगता है,चन्दन का तिलक इसे शीतल रखता है। इससे सर दर्द नहीं होता और स्मरणशक्ति बढ़ती है ।
मस्तिष्क मे रसायन
“सेराटोनिन(Serotonin)एवं “बीटाएंडोरफिन(Beta-endorphin) की कमी उदासी लाते हैं तिलक के प्रयोग से इन दोनों रसायनो का स्राव संतुलित हो जाता है। इसके अतिरिक्त तिलक लगाने से हमारा ध्यान केन्द्रित रहता है और मस्तिष्क की क्षमता बढ़ती है।