शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

सृजन : ( Creation by Brahma )


मुझे ये जान के आश्चर्य होता है कि लोग विज्ञान को आध्यात्म से दूर ले जाने वाली चीज समझे हैं।मेरा मानना है विज्ञान  ही  हमें सही मायने में आध्यात्मिक होने की सीख देती है। परमाणु में इलेक्टोनों की अद्भुद गति को देख के ऐसा लगता है जैसे भगवान् शिव का तांडव नृत्य ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में मौजूद है।"

-डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम( Wings of fire )
   
एक सवाल जो वैज्ञानिक जगत में बार बार उठता है कि किसी विद्वान् ने ये सृष्टि बनायी है या सृष्टि ने विद्वानों को बनाया है ?

ये सवाल बिलकुल मुर्गी और अंडे वाले सवाल की तरह है.
इस पोस्ट में प्राचीन ग्रंथों में वर्णित 'रचना प्रक्रिया Creation-Phenomenon'  का संक्षेप  में उल्लेख करने कि कोशिश कि गयी है और साथ ही साथ उनमें छिपे वैज्ञानिक तथ्यों  को भी सामने लाने की कोशिश की गयी है.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारतीय दर्शन "विद्वान्" और "तत्व" दोनों विचारधाराओं के अलग चलते हुए "पुरुष" का वर्णन करता है. पुरुष -मतलब स्वयं जो विद्वता का द्योतक है .
यही आदि-पुरुष या मौलिक-जीव(Original Being)  भगवत पुराण के अनुसार है -सर्व शक्तिमान भगवान् विष्णु .

Adi-Purush: Supreme God Vishnu
सृष्टि निर्माण के लिए दो क्षेत्र (Realms) अस्तित्व में हैं - निर्गुण क्षेत्र (Spiritual Realm) और आकार क्षेत्र (Material Realm).
निर्गुण क्षेत्र (Spiritual Realm) सभी शुद्ध आत्माओं का निवास स्थल है जो कि वैकुण्ठ ग्रह पर रहती हैं.
आकार आत्माएं ( आपकी और मेरी तरह ) आकार क्षेत्र(Material Realm) के विभिन्न ब्रह्मांडों विभिन्न गैलेक्सियोंविभिन्न ग्रहों पर जन्म लेती हैं.
आकार क्षेत्र में भगवान् विष्णु के तीन रूप मौजूद हैं:
  1. श्री कारणओदक -शई महा विष्णु / नारायण
  2. श्री गर्भोदक-शई विष्णु / हिरण्यगर्भ
  3. श्री क्षीरोदक-शई विष्णु / परमात्मा
विष्णु का पहला रूप श्री कारणओदक-शई महा विष्णु हैं जो कि लौकिक जल (cosmic water) पर लेटे हुए हैं.'लौकिक जलया कारण-ओदक (Causal ocean) (जो सब चीजों का कारण हैं) - विष्णु के ही शरीर से निर्गत होता है और आकार क्षेत्र (Material Realm) का निचला आधा हिस्सा इसी से भरा होता है.

Shri Maha Vishnu, lying on the Causal Ocean generated from His own Self
इस समय श्री महा विष्णु आकार निर्माण एक मात्र  की जीवित इकाई हैं.विष्णु के इस रूप को "काल-स्वभाव:" कहा गया है यानी टाइम- स्पेस की नींव (Foundation of time-space Continuum). इन्होने Quantum Physics का आधार बनाया जो सभी दुनिया में हर जगह (at Sub-Atomic as well as Super-Galactic level ) मौजूद है .
भगवान् के इस पहले रूप के साथ की आकार क्षेत्र में सृष्टि रचना की शुरुवात होती है.
Material nature की इस प्रथम अव्यक्त अवस्था को 'प्रधान' कहा जाता था है.
इस चरण तक कोई शब्दकोई भाव नहीं थेन ही कोई मन न ही कोई तत्व थान ही जीवन न ही बुद्धिन देवता न राक्षसन ख़ुशी न दुख. इस समय तक न पृथ्वी थी न आकाश न जल न वायु न अग्निजीवन के कोई लक्षण जैसे जागनासोना कुछ भी नही था .
इसीलिए ये प्रधान’  Material Nature का मूल पदार्थ (Original Substance) था जो कि आगे की रचना का आधार बना.
'प्रधानकी तुलना हाल ही खोजे गए Higgs Boson या God Particle से की जा सकती है. 
विज्ञान की दृष्टि में Higgs Boson ही मूल पदार्थ है जिस से सभी चीजों का निर्माण हुआ है. 


God Particle-Higgs Boson: The original matter

 

आकार क्षेत्र में रचना की शुरुवात :

यहाँ सृष्टि निर्माण के प्रकिया को विभिन्न चरणों में वर्गीकृत किया गया है जिन्हें सर्ग कहते हैं .
1. प्रथम सर्ग:
श्री महा विष्णु कि इच्छा के कारण 3 गुणों (सत्वतमस और रजस) की साम्यावस्था में विक्षोभ उत्पन्न हुआ और इसकी वजह से एक अति सूक्ष्म पदार्थ (subtle imperceptible ) 'महत तत्वका निर्माण हुआ.

इस  अति सूक्ष्म पदार्थ को हम अपनी भौतिक इन्द्रियों से नहीं देख सकते और इसी महत तत्व से बुद्धि (Intellegence) के साथ साथ अहम् (Ego) का निर्माण हुआ.
यानी यहाँ पे एक सवाल का जवाब मिल जाता है. पुरुष ने ही Subtle Matter और Intelligence दोनों का निर्माण किया है और आगे चल कर इसी से 'मनका निर्माण होता है.

2.द्वितीय सर्ग:
इस दूसरे चरण में तत्वों का निर्माण होता है.जिन्हें पञ्च महाभूत कहते हैं.इन्ही के विभिन्न combinations से अनगिनत वस्तुओं का निर्माण होता है.

  1. निर्माण के लिए पर्याप्त space (अन्तरिक्ष)
  2. ठोस (थल)
  3. द्रव (जल)
  4. गैस (वायु)
  5. सबसे महत्वपूर्ण: 'ऊष्मा' (अग्नि)
हालांकि वैज्ञानिक आविष्कार ने सृष्टि निर्माण के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है लेकिन मूल कण Higgs  Boson  की खोज 2011 में हो पाना इस बात का सूचक है की ऐसे असंख्य तथ्य हैं जो अभी तक विज्ञान की दृष्टि में नहीं आये हैं. Higgs Boson से ही अन्य subatomic particles जैसे प्रोटोनन्यूट्रॉन और इलेक्ट्रान का निर्माण हुआ है . यहाँ तक की क्वार्क कण भी मूल नहीं हैं वे भी Higgs  Boson  से बने हुए हैं.

यानी प्रधान से महत तत्व का बनना और फिर महत तत्व से पञ्च महा भूत का बनाना वैज्ञानिक रूप से पुष्ट होता है.
पञ्च महा भूत और कुछ नहीं बल्कि द्रव्य-ऊर्जा मॉडल (Mass -Energy  model ) है.
अन्तरिक्ष(1) में उपस्थित पदार्थ(Mass) 'ठोस(2), द्रव(3) और गैस(4)' और ऊष्मा(Energy )(5).





Comparision:Mass-Energy Model and Panch Mahabhut

3. तृतीय सर्ग:
तृतीय सर्ग में दसेंद्रियों (10 Organs) का निर्माण होता है.
जिनमें से ज्ञानेन्द्रियाँ ( sensory organs ) और कर्मेन्द्रियाँ (organs of  action) कहलाती हैं.
ज्ञानेन्द्रियाँ : दृष्टिश्रवण ,गंध स्वाद और स्पर्श.
कर्मेन्द्रियाँ : मुख हाथ जनदगुदा और पैर.
निर्माण के इन तीन चरणों को सामूहिक रूप से प्रकृति सर्ग’ कहा जाता है है.
ये निर्माण ब्रह्मा के द्वारा नही हुया है बल्कि भगवान की Natural Energy की वजह से ये सब अस्तित्व में आया जिसे प्रकृति कहते हैं.


जैव विकास की प्रक्रिया का अध्ययन करने पे आपको पता चलेगा की दुनिया में आये शुरुवाती जीवों में सभी १० अंग नहीं थे. लेकिन जैसे जैसे विकास का प्रक्रम आगे बढ़ा एक के बाद एक इन्द्रियों का विकास होना शुरू हुआ. और आज जब हम सबसे विकसित प्रजाति को देखते हैं तो हम पाते हैं कि इनमें ये सभी १० इन्द्रियाँ पूर्ण विकसित रूप में हैं.
इसका अर्थ ये ही है इन सभी इन्द्रियों का विकास पहले से ही योजनाबद्ध था. प्रकृति में ये सारी इन्द्रियाँ मौजूद थी पर शुरूआती जीवो में विकसित नहीं हुयी थीं.

हमारे ब्रह्माण्ड का निर्माण :

सभी आधार भूत संरचनाओं के बाद हमारे ब्रह्माण्ड और अन्य ब्रह्माण्ड का निर्माण शुरू हुआ.
4. चतुर्थ सर्ग:
महा विष्णु के लौकिक शारीर (Cosmic-Body) पर मौजूद असंख्य छिद्रों से अनेक ब्रह्माण्ड निकले.
हिरन्यगर्भ नाम के एक केंद्र से संपूर्ण ब्रह्माण्ड के निकलने की इस घटना को विज्ञान में बिग बैंग कहा गया है।
भगवान् फिर अपने दूसरे रूप में (श्री गर्भोदक-शई विष्णु) प्रत्येक अंडाकार ब्रह्माण्ड में प्रवेश करते हैं.
विष्णु के इस दूसरे रूप में वे के बहुत बड़े सांप 'अनंत' पर  लेटे  हुए हैं. अनंत अपने अपने ब्रह्माण्ड का संरक्षक है.
विष्णु के इस रूप को हिरन्यगर्भ (Born-of-The-Golden-Egg) भी कहते हैं क्योंकि वे ब्रह्म अंड (Universal Egg) में आकार लेते हैं.



Each Universe emerging from Maha-Vishnu contains a Garbhodak-shayi Vishnu

1000 महा युग के बाद में भगवान के नाभि से एक कमल की कलि निकलती है जिसमे से जन्म होता है 'ब्रह्माका.
'ब्रह्मा' : प्रत्येक ब्रह्मांड की पहली अमर इकाई ( Mortal Being ).

Shri Garbhodakshayi Vishnu becomes visible to Lord Brahma 
एक नवजात शिशु की तरह ब्रह्मा हर चीज से अनजान थे. उन्होंने अपने मुख  से सबसे पहला शब्द बोला 'ऊं' .उन्हें अपने होने का कारण भी नहीं पता था .अपने चारों ओर उन्हें अन्धकार के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था.
तब उन्होंने कमल के तने के साथ आगे बढ़ना तय किया किन्तु वहां भी उन्हें Dead End मिला.
फिर ब्रह्मा ने 100 महा युग तक ध्यान योग किया और अंत में उन्हें श्री गर्भोदक शई विष्णु नजर आये. विष्णु के द्वारा दी गयी दिव्य दृष्टि से ब्रह्मा को गर्भ सागर पे लेटे हुए नीले शरीर वाले विष्णु का दर्शन हुआ.
श्री हरी विष्णु ने तब ब्रह्मा को उनके होने का कारण बताया और ये भी बताया की उन्हें कितना बड़ा काम करना है.
ब्रह्मा निरुत्तर थे . ये बिलकुल उसी तरह की बात है जैसे आपके बॉस ने आपको एक बहुत बड़ा नया प्रोजेक्ट बनाने को कहा हो आपको ये भी न पता हो की ये प्रोजेक्ट है क्या और कैसे करना है सौभाग्य से यहाँ पे बॉस स्वयं आदि पुरुष भगवान् विष्णु थे जिन्होंने ब्रह्मा को बताया की सृजन का काम भगवान् के अपने शरीर के हिस्से की सहायता से शुरू किया जाए.
यहाँ से ब्रह्मा के द्वारा वास्तविक निर्माण का काम शुरू होता है.
Lord Brahma, First MORTAL Living Being in EACH Universe


प्रत्येक ब्रह्माण्ड के लिए विष्णु का अपना एक रूप था और साथ में ब्रह्मा का भी .
यानी वहां करोड़ों करोड़ों ब्रह्मा अपने अपने ब्रह्माण्ड के निर्माण कार्य में लगे हुए थे.
ब्रह्मा ने पहले निर्जीव चीजें बनायी जैसे ग्रहपर्वत भूमि इत्यादि. जिनमें स्वयं गति करने की क्षमता नहीं थी.
निर्माण के इस चौथे चरण को मुख्य सर्ग कहते हैं.

Lord Brahma begins Creation

5. पंचम सर्ग:
अगले चरण जिसे तिर्यक सर्ग कहते हैं में ब्रह्मा ने 6 विभिन्न प्रकार की vegetation का निर्माण किया. यहीं पे पेड़ पौधों वनस्पतियों की रचना हुयी. 28 प्रकार के पशुओं और 12 प्रकार के पक्षियों का निर्माण हुआ.

बिग बैंग थ्योरी के अनुसार एक केंद्र से सभी ब्रह्मांडों का निष्कासन हुआ. द्रव्य-ऊर्जा के प्रादर्श से सभी ग्रहों पर रासायनिक अभिक्रियाँ शुरू हुयी और निर्जीव चीजों का निर्माण शुरू हुआ. पहले छोटे अणु ( जैसे N2 , H2, O2 ,H2O,NH3 आदि) बने फिर थोड़े वृहद् अणु (जैसे प्रोटीनकार्बोहाइड्रेट आदि ) का निर्माण हुआ. इन वृहद् अणुओं से निम्न स्तरीय वनस्पति (जैसे कवक,शैवाल आदि ) बने और फिर वृहद् वनस्पतियाँ बनीं.
और इसके बाद पहले निम्न स्तरीय जंतु और उच्च स्तरीय जंतु बने.
जैव विकास के प्रक्रम का विस्तार से वर्णन अगली पोस्ट "दसावतार" में किया जायेगा.

6.छठा सर्ग:
छठे चरण में Demigods (यक्ष) का उद्भव हुआ. इसीलिए इसे देव सर्ग कहा गया है.
सभी प्रकार की दिव्य रचनाएं इसी चरण में बनीं:
सबसे पहले 4 चिरकालिक कुमारों (4 Eternal  Kumaras ) आये. ब्रह्मा के बनाये हुए चार बच्चे ब्रह्मा के सामान ही चिरंजीवी हैं लेकिन वे ब्रह्मा के बजाए विष्णु के अनुयायी बने.
इस बात से क्रोधित ब्रह्मा के ललाट से गहरे लाल और नील रंग के शिशु का जन्म हुआ.
इस चिल्लाते-रोते शिशु का नाम रखा गया - रूद्र .
लेकिन रूद्र ने भी तपस (Penance) का रास्ता अपनाना तय किया. इस बात से ब्रह्मा निराश हुए. लेकिन अंत में उन्होंने उसे अपनी सहायता करने के लिए मना लिया. तब रूद्र स्वयं के समान ११ भागों में विभाजित हो गया.
 


सृष्टि निर्माण के समय ये सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि ऎसी इकाई बनायी जाए जो गुणन (जनन)  करने की क्षमता रखती हो. शुरुवात में बने चारों मुख्य घटक - जलप्रोटीनकार्बोहायड्रेट और वसा जनन करने की क्षमता नहीं रखते थे.
इसीलिए इसके बाद ऐसी इकाई बनी जिसमें जनन के शुरूआती लक्षण दिखाई दिए.
'बैक्टीरियाऐसे जीव जिनमें Binary  Fission होना संभव हुआ. यानी अपने ही सामान अनेक जीवों में विभाजित होने की क्षमता. यहाँ कायिक जनन की शुरुवात हुयी.





ब्रह्मा के अनुरोध पर रूद्र अर्धनारीश्वर के रूप में आये और मादा सिद्धांत का जन्म हुआ जिसका नाम था रुद्राणी .

बैक्टीरिया के बनने तक उसमें नर और मादा का विभेद नहीं था किन्तु कुछ उच्च स्तरीय बैक्टीरिया में + स्ट्रेन और - स्ट्रेन बनने लग गयी. यहाँ अलैंगिक जनन की शुरुवात हुयी.और फिर थोड़ी और विकसित प्रजातियों में पूर्ण रूप से नर और मादा का विभेद हो गया.

अपने बनाई कृति रूद्र को संख्या में बढ़ते देख कर ब्रह्मा को कुछ संतुष्टि तो मिली रूद्र के इस भयंकर रूप के कारण उसे भगवान की विनाशक शक्ति (Supreme Lord's power of Destruction) के रूप में देखा गया.

जिस तरह से जगत में जीवों का जन्म आवश्यक है उसी तरह से उनका विनाश भी आवश्यक है.आज हम देखते हैं की पृथ्वी पर असंख्य जीव जंतु पैदा होते हैं अगर इनका विनाश न होता तो पृथ्वी कई सतह अनगिनत जीवों और लाशों से भर गयी होती.किन्तु बैक्टीरिया ऐसे जीव हैं जो हर समय अन्य जीवों का विनाश करने में लगे रहते हैं. और मृत शरीरों का भक्षण करते पृथ्वी को साफ़ बनाये रखते हैं.

Bacteria:The destructor


ब्रह्मा को यह महसूस हुआ की रूद्र की संतान वो नहीं हैं जो वे बनाना चाहते थे तब उन्होंने १० मानसपुत्र बनाए.
मन निर्मित ब्रह्मा के ये १० मानस पुत्र थे- अत्रीअंगीरसअथर्वभृगुदक्षमरीचिपुलहपुलत्स्यवसिष्ठ और सबसे छोटा नारद .
जब इन १० पुत्रों ने भी विकास की प्रक्रिया का हिस्सा बनने की बजाय कुमारों के रास्ते पे चलना तय किया तब ब्रह्मा फिर नकारात्मक ऊर्जा से भर गए.
इसके परिणाम स्वरुप ब्रह्मा ने असुरों का निर्माण किया. ब्रह्मा ने इन्हें इनके तामसिक रास्ते पे चलने दियाये रात्री समय का निर्माण था.

Asuras or Demons

अपनी शक्तियों को केन्द्रित करके ब्रह्मा ने फिर से सात्विक रास्ता अपनाते हुए देवताओं का निर्माण किया. प्रत्येक देव आकार निर्माण के विभिन्न घटक के संरक्षक बने. ये दिन के समय का निर्माण था.

Devas or Demigods

इसके बाद ब्रह्मा ने पित्र का निर्माण किया. और फिर अन्य देवी देवताओं जैसे गायत्री सरस्वती प्रसूति चार वेदभावनाएं संगीत और ऋषि कर्मकांड.
प्रसूति पहले मानस पुत्र यक्ष की पत्नी बनी और यहीं से लैंगिक जनन की शुरुवात हुयी.
Copulative Reproduction between Yaksh and Prasuti

इसी के साथ देव सर्ग समाप्ति की ओर बढ़ा ,ब्रह्मा ने जो काफी थक चुके थे अब एक विराम का निर्णय किया. वे अपने अब तक के निर्माण कार्य को देखने लगे और उन्होंने तीसरा रूप लिया राजसिक (mode-of-passion).
इसी समय उन्होंने अपने ही समान दिखने वाली महान कृति का निर्माण किया जिसका नाम था 'स्वम्भू मनु' . पहला मानव जो कि 'कायाके साथ पैदा हुआ (का- ब्रह्मा या- रूप).
Swayambhu Manu, the First Man

ये बात बहुत ही रोचक  है कि बाइबिल  भी यही  घटना लिखी है   'Man was created in the Image of His Maker!'
यह भी रोचक है कि जर्मनी की जन जातियां अपने पूर्वज को मानुष कहती है.
मनु शब्द अंग्रेजी के शब्द 'Man' का भी मूल है और हिंदी के शब्द 'मनुष्यका भी मूल है.
मनु के साथ एक नारी भी बनाई गयी थी जिसका नाम था सतरूपा. ब्रह्मा ने मनु और सतरूपा को पृथ्वी ग्रह पे भेज दिया.
पृथ्वी पे मनु और सतरूपा के संततियों ने संपूर्ण ग्रह पर पीढ़ी दर पीढ़ी गुणन करना शुरू किया जो आज तक चल रहा है.
Manu and Shatrupa - Adam and Eve - Aadam and Houwa

7.सांतवे सर्ग में मनुष्य के विकास का वर्णन है इसलिए इसे मनुष्य सर्ग कहते हैं
8.आंठ्वे सर्ग जो की अनुग्रह सर्ग के नाम से जाना जाता है में अन्य प्रजातियों का वर्णन है
9.नवें और अंतिम सर्ग  में कुमारों के पुनरागमन की कहानी लिखी है.
और यहाँ पर ब्रह्मा के द्वारा निर्माण की प्रक्रिया का अंत होता है.
एक पाठक के रूप में आप इस पोस्ट को पढ़ते हुए और एक लेखक के रूप में मैं इस पोस्ट को लिखते हुए कितना थक गए हैं इससे हम ब्रह्मा की उस समय की स्थिति की कल्पना कर सकते हैं.

Brahma heaves a sigh of relief!
समाप्ति से पहले विष्णु के तीसरे रूप की बात कर लेते हैं -श्री क्षीरोदक शयी विष्णु जो निर्माण की हर इकाई (परमाणु) में परमात्मा के रूप में मौजूद हैं.समाप्ति से पहले विष्णु के तीसरे रूप की बात कर लेते हैं -श्री क्षीरोदक शयी विष्णु जो निर्माण की हर इकाई (परमाणु) में परमात्मा के रूप में मौजूद हैं.
Lord Vishnu: Present in every Atom
इनका विस्तृत वर्णन मेरी अगली पोस्ट "दसावतार" में आएगा. क्योंकि विष्णु के इस तीसरे रूप से  ही सभी अवतारों का जन्म होता है.



Concept of creation according our scripture as well as according to modern science


भाई राजीव दीक्षित के बाद स्वदेशी आंदोलन की दिशा-नौ दिन चले अढ़ाई कोस


मित्रों इस पोस्ट पर कुछ भी लिखने से पहले मै एक बात पहले से स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की मै भाई राजीव दीक्षित का एक प्रबल समर्थक हूँ एवं उनके आदर्शो के अनुसार कार्य  करने की कोशिश करता हूँ। इस पोस्ट का उद्देश्य किसी भी प्रकार से भी भाई राजीव दीक्षित या किसी सम्बद्ध पर प्रश्न उठाना नहीं मगर एक स्वाभाविक समर्थक होने के कारण अपने प्रश्न और विचार आज राजीव भाई को श्रद्धांजलि  देने के बाद प्रकट करना चाहता हूँ। राजीव भाई के विषय मेरी पिछली पोस्ट कृपया यहाँ पढ़ें। 
राजीव दीक्षित किसी परिचय का मोहताज शब्द नहीं है जैसा की पहले भी कई अवसरो पर मै कह चुका हूँ की आधुनिक भारत मे यदि दो महापुरुषों की बात करू तो राजीव भाई और विवेकानंद  को काफी  ही पाता हूँ।राजीव भाई का आंदोलन आजाद इंडिया मे था और विवेकानंद का गुलाम भारत मे ॥मगर उद्देश्य दोनों ही समय,हिंदुस्थान मर चुके स्वाभिमान को जगाना था. 
राजीव भाई के दुखद निधन के बाद जो अपूर्णीय क्षति हुई उस रिक्त स्थान को भर पाना असंभव सा प्रतीत हो रहा था । मगर मुझे और मेरे जैसे कई राजीव भाई के  अनुयायियों को ये जान कर बहुत ही संतुष्टि हुई की राजीव भाई के आंदोलन की अगली कड़ी स्वदेशी भारत पीठम के रूप मे भाई प्रदीप दीक्षित जी आगे बढ़ा रहे हैं। इसी सन्दर्भ में  पिछले साल भाई प्रदीप दीक्षित जी का व्याख्यान ६ नवम्बर 2011 (रविवार) को नई दिल्ली में जनकपुरी स्थित आर्य समाज मंदिर में भाई अरुण अग्रवालजी के देखरेख एवं प्रबंधन  में संपन्न हुआ था । उसके बाद हम कई राज्यों से समर्पित कार्यकर्ता वर्धा पहुचे और विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम वहाँ आयोजित हुए। 
मगर धीरे धीरे जैसे जैसे समय  बीतता गया ऐसा  अनुभव हुआ की कई समर्पित कार्यकर्ता धीरे धीरे इस आंदोलन के प्रति उदासीन होते गए उनके अपने तर्क थे । इस बीच हालाँकि आंदोलन से जुडने वाले लोगो की भी कमी नहीं थी । कुछ मुद्दो पर व्यक्तिगत रूप से मै भी व्यक्तिगत रूप से सहमत नहीं था मगर यदि एक बहुत बड़ा जनजागरण का अभियान चल रहा हो तो किसी व्यक्ति विशेष की असहमति ज्यादा महत्त्व नहीं रखती। मगर पिछले कुछ दिनो मे धरताल पर कार्य करते समय एवं सामाजिक  संचार के साधनो के माध्यम से मुझे ऐसा प्रतीत हुआ की एक हम सभी राजीव भाई के समर्थको के साथ साथ एक ऐसा समूह समाज मे तैयार हो रहा है जो अब तक राजीव भाई के विरोध मे आ चुका है ।शायद  आने वाले दिनो मे ये ज्यादा मुखर हो । दुख की बाद ये है ये एक बड़ा वर्ग सिर्फ राजीव भाई के आंदोलन के प्रबन्धको की नाकामी के कारण उनका विरोध कर रहा है ॥ 
इनमे से कुछ लोग कभी राजीव दीक्षित के समर्थक या कुछ लोग तटस्थ लोग हैं  ॥मैंने अपने अनुभवों और सर्वेक्षण के आधार पर कुछ बाते पायी है जो इस ब्लॉग के माध्यम से सामने रख रहा हूँ ॥ इससे आप सहमत भी हो सकते हैं या असहमत क्यूकी ये मेरा अपने स्तर से किया गया व्यक्तिगत  सर्वेक्षण है । यदि कटु लगे तो क्षमा प्रार्थी हूँ । ये सारे सर्वेक्षण उत्तर भारत के है ।  

1 ऐसा कई कार्यकर्ताओं  को लग रहा है की राजीव भाई का आंदोलन सिर्फ सीडी बेचने का धंधा बन के रह गया है । किसी सार्वजनिक मुद्दे पर इसकी उपस्थिती न के बराबर या स्टॉल लगाने तक होती है । आन्दोलन के लोग भावनाओ को बेचने से आगे कुछ नहीं कर रहे है । 

ज़्यादातर आंदोलन शहरो के इर्द गिर्द सीमित है (शायद महाराष्ट्र इसका अपवाद हो)। यदि ग्रामीण क्षेत्रों मे कुछ कार्य हो रहा है तो फिर प्रबंधन की कमी के कारण आस पास के लोगो तक इसकी खबर नहीं पहुच पाती है.

3 आंदोलन के कुछ क्षेत्रों के कर्णधार  कम से कम समय मे ज्यादा से ज्यादा प्रसिद्ध होना चाहते हैं,या दूसरे शब्दों मे कह ले तो हर दूसरा व्यक्ति अपने आप को राजीव भाई ही समझ रहा है उनके जैसा बनने का प्रयास करने मे कोई बुराई नहीं मगर उन तथाकथित लोगो को ये सर्वदा ध्यान रखना होगा की  "राजीव दीक्षित " के लिए समाज का हित सर्वोपरि था । 

4  पिछले साल के कार्यक्रम मे Paid Poets का विचार काफी लोगो को निरर्थक लगा॥ कई लोगो को ऐसा प्रतीत हुआ की कई तथाकथित स्थापित कवि लोग राजीव भाई को श्रद्धांजलि देने की बजाय अच्छी ख़ासी कमाई  और प्रचार के उद्देश्य से वर्धा पधारे थे । जबकि सुदूर राज्यों से आने वालों का उद्देश्य कुछ और था । 

5 भाई राजीव दीक्षित के आंदोलन को आगे बढ़ाने मे भारत स्वाभिमान का एक विशेष योगदान था क्यूकी भारत स्वाभिमान मे गाँव गाँव तक फैला हुआ संगठन है मगर स्वदेशी भारत पीठम और भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ताओं के बीच पिछले साल वर्धा मे 30 नवम्बर को स्वदेशी मेले के दौरान पोस्टर लगाने को ले कर हुए विवाद ने ये स्पष्ट कर दिया की इन दोनों संगठनो के बीच सब कुछ अच्छा नहीं है । 
इस विषय पर मैंने भारत स्वाभिमान के कुछ  वरिष्ठ लोगो से बात की उनके अनुसार कुछ एक लोग जो उस समय स्वदेशी भारत पीठम वर्धा मे थेवो भारत स्वाभिमान हरिद्वार कार्यालय से निष्कासित/स्वेछा से चले गए लोग थे,अतः उन लोगो का स्वामी रामदेव के संबंध मे विचार नकारात्मक था जो गाहे बेगाहे संचार और सामाजिक मीडिया के साधनो द्वारा  सामने भी आता था। इसके कारण भी स्वामी रामदेव  के भारत स्वाभिमान ने  स्वदेशी भारत पीठम से दूरी बना ली । हलाकी  कौन सही  है ये एक अलग विषय था। इस विषय मे वर्धा कार्यालय तक कई लोगो ने अपने विचार पहुचाए मगर कार्यवाही कुछ खास नहीं हुई। मुझे नहीं लगता की स्वामी रामदेव इस साल वर्धा आएंगे यदि आए भी तो ये सिर्फ राजीव भाई को श्रद्धांजलि प्रेषण और भाई प्रदीप दीक्षित जी से व्यक्तिगत संबंधो के कारण होगा। 

6 बाबा रामदेव और स्वदेशी भारत पीठम के विचार लगभग एक ही है अतः स्वाभाविक है की जब तक किसी एक एक संगठन ने "विचारों का व्यवसायीकरण" नहीं किया है तब तक सब सही रहेगा॥ स्वामी रामदेव का संगठन पहले से ही स्वदेशी उत्पादो के प्रचार प्रसार एवं व्यवसाय मे है अतः स्वदेशी भारत पीठम जब भी आंशिक या पूर्णतया कोई व्यावसायिक परियोजना शुरू करता है, भारत स्वाभिमान इसे अपने स्वदेशी व्यापार मे एक अन्य साझीदार/प्रतिस्पर्धी की तरह देखेगाअतः धरातल पर सहयोग संभव नहीं है ।

अब एक ऐसा विषय जो इन सब से इतर है । राजीव भाई के कुछ व्याख्यानों पर जो समाज मे प्रसारित किए जा रहे हैं उस पर कुछ लोगो को आपत्ति है। जैसा की सभी जानते हैं की राजीव भाई के शोध कार्यों मे उनकी टीम का भी एक महत्त्वपूर्ण योगदान होता था जो उनके दिशानिर्देशों पर काम करती थी। ये एक स्वाभाविक सी बात है की कुछ तथ्यों और आंकड़ो मे कुछ बाते ऐसी हो जिससे सहमत न हुआ जा सके । जाने अनजाने उन तथ्यों को प्रसारित किया जा रहा है जिससे की एक विचारधारा के लोगो को समस्या और कुछ का महिमामंडन होता है । अब राजीव भाई तो इन प्रश्नो का उत्तर देने के लिए हैं नहीं और उनके आंदोलन के तथाकथित प्रबन्धक इन आपतियों पर कोई संग्यान नहीं लेते। "इस्कॉन मंदिर" ,"मंगल पांडे" "महात्मा गांधी" ,"वीर सावरकर" ,"गौ हत्या का कारण अंग्रेज़??जैसे धर्म और इतिहास के अनेक मुद्दे  संवेदनशील मुद्दो पर इस आंदोलन के विचार स्पष्ट नजर नहीं आते । न ही कोई ऐसा माध्यम है जहाँ से इन बातों का स्पष्टीकरण मिल सके । 
अतः कई लोग सिर्फ कुछ एक विवादित मुद्दों के स्पष्टीकरण न मिलने के कारण या तो उदासीन या विरोध मे आ गए है । इससे नुकसान ये है कुछ 1-2% बातों  को गलत दिखाकर वो सारे शोधकार्यों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। 

राजीव भाई का पार्थिव शरीर 
8 राजीव भाई की आकस्मिक मृत्यु और उसपर उठते प्रश्नो पर आज तक कोई स्पष्ट विचार नहीं आया जिससे इस मुद्दे पर नित्य नयी नयी कहानियाँ बनाई जाती रहती है । आंदोलन से जुड़े कुछ लोग ऐसे भी है जो आलोचना करने वालों पर व्यक्तिगत हो कर और आक्रामक हो कर प्रतिक्रिया देने लगते है जबकि उन्हे धैर्यपूर्वक ये समझना चाहिए की आलोचनाओ से सुधार और परिष्करण की नीव पड़ती है। 

ये देखकर अत्यंत प्रसन्नता होती है की राजीव भाई के आंदोलन से लाखो लोग जुड़ रहे है मगर ये एक कटु सत्य है की प्रबंधन की कमी के कारण उसी प्रकार कुछ लोग आंदोलन से दूर भी होते जा रहे हैं। उन्हे स्थायी रूप से जोड़े रखने के लिए कोई योजना नहीं दिखाई देती।विचारो और आंदोलन की दशा और दिशा का संवर्धन पिछले सालो मे हुआ है उससे बहुत जायदा संतुष्टि  समर्थको को नहीं हुई होगी। 

इन सारे विरोधाभाषों के बाद राजीव भाई का एक स्वाभाविक समर्थक  होने के कारण  अपने सभी मित्रों को  इस आंदोलन से जुडने का अनुरोध करता हूँ और ऐसा विश्वास है की  भाई प्रदीप जी के नेतृत्व मे ये आंदोलन सफल होगा और राजीव भाई की विचारधारा का क्रियान्वयन वास्तविकता के धरातल पर सक्रिय रूप से आने वाले वर्षों मे दिख पाए।

राजीव भाई जी को उनके जन्मदिवस एवं द्वितीय पुण्यतिथि पर सादर नमन एवं श्रद्धांजलि.

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गुरुवार, 29 नवंबर 2012

तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहे न रहे --राजीव भाई को श्रद्धांजलि


आज के एक साल पहले राजीव भाई की पुण्यतिथि पर वर्धा जाने से  दो दिन पहले ये लेख मैंने लिखा था॥ इसे आज पुनः इसलिए पोस्ट कर रहा हूँ क्यूकी कल शायद राजीव भाई की पुण्यतिथि पर जो लेख लिखूँ वो कुछ राजीव भाई के आंदोलन को नेतागिरी और व्यक्तिगत प्रसिद्धि की दुकान के रूप मे इस्तेमाल करने वाले समर्थको को अच्छी न लगे॥ 
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भाई राजीव दीक्षित जी के नाम स्वदेशी और आजादी बचाओ आन्दोलन  से हम सभी परिचित  हैं.. एक
अमर हुतात्माजिसने अपना पूरा जीवन मातृभाषा मातृभूमि को समर्पित कर दिया..कल उनका जन्मदिवस और दूसरी पुण्यतिथि भी है..30 नवम्बर के  दिन ये अमर देशभक्त हमारे बिच आया था और दो साल पहले हमारे बिच से उसी दिन राजीव भाई चले गए..अगर राजीव भाई के प्रारम्भिक जीवन को देखें  तो जैसा की हम सब जानते हैं ,राजीव भाई एक मेधावी छात्र एवं  वैज्ञानिक भी थे..आज के इस भौतिकतावादी दौर में जब इस देश के युवा तात्क्षणिक हितों एवं भौतिकवादी साधनों के पीछे भाग रहा हैराजीव भाई ने राष्ट्र स्वाभिमान एवं स्वदेशी की परिकल्पना की नीव रखने के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन को राष्ट्र के लिए समर्पित कर त्याग एवं राष्ट्रप्रेम का एक अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत किया..सार्वजनिक जीवन में आजादी  बचाओ आन्दोलन से सक्रीय हुए राजीव भाई ने स्वदेशी की अवधारणा एवं इसकी वैज्ञानिक  प्रमाणिकता को को आन्दोलन का आधार बनाया..
स्वदेशी शब्द हिंदी के " स्व" और "देशी" से मिलकर बना  है."स्व" का अर्थ है अपना और "देशी" का अर्थ है जो देश का हो.. मतलब स्वदेशी वो है "जो अपने देश का हो अपने देश के लिए हो" इसी मूलमंत्र को आगे बढ़ाते हुए राजीव भाई ने लगभग २० वर्षों तक अपने विचारो,प्रयोगों एवं व्याख्यानों से एक बौद्धिक जनजागरण एवं जनमत बनाने का सफल प्रयास कियाजिसके फलस्वरूप हिन्दुस्थान एवं यहाँ के लोगो ने अपने खुद की संस्कृति की उत्कृष्ठता एवं वैज्ञानिक प्रमाणिकता को समझा और वर्षों से चली आ रही संकुचित गुलाम मानसिकता को छोड़ अपने विचारों एवं स्वदेशी पर आधारित तार्किक एवं वैज्ञानिक व्यवस्था को अपनाने का प्रयास किया..
वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के प्रबल विरोधी राजीव भाई ने अंग्रेजो के ज़माने से चली आ रही क्रूर कानून व्यवस्था से लेकर टैक्स पद्धति में बदलाव के लिए गंभीर प्रयास किये..अगर एक ऐसा क्षेत्र  लें जो लाल बहादुर शास्त्री जी के के बाद सर्वदा हिन्दुस्थान में उपेक्षित रहा तो वो है "गाय,गांव और कृषि " इस विषय पर राजीव भाई के ढेरो शोध और प्रायोगिक अनुसन्धान सर्वदा प्रासंगिक रहे हैं..वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की आड़ में पेप्सी कोला जैसी हजारों बहुराष्ट्रीय कंपनियों कोखुली लूट की छूट देने वाले लाल किले दलालों के खिलाफ राजीव भाई की निर्भीक,ओजस्वी वाणी इस औद्योगिक सामाजिक मानसिक एवं आर्थिक रूप से गुलाम भारत को इन बेड़ियों से बाहर निकलने का मार्ग प्रशस्त करती थी..मगर सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन की राह और अंतिम अभीष्ट  सर्वदा विरोधों और दमन  के झंझावातों से हो कर ही मिलता है..व्यवस्था परिवर्तन की क्रांति को आगे बढ़ाने में राजीव भाई को सत्ता पक्ष से लेकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कई बार टकराव झेलना पड़ना और इसी क्रम में यूरोप और पश्चिम पोषित कई राजनीतिक दल और कंपनिया उनकी कट्टर विरोधी हो गयी..
 अगर हम भारत के स्वर्णिम इतिहास के महापुरुषों की और नजर डाले तो राजीव भाई और विवेकानंद को काफी पास पाएंगे..जिस प्रकार विवेकनन्द जी ने गुलाम भारत में रहते हुए यहाँ की संस्कृति धर्म और परम्पराओं का लोहा पुरे विश्व के सामने उस समय मनवाया जब भारत के इतिहास या उससे सम्बंधित किसी भी परम्परा को गौण करके देखा जाता थाउसी प्रकार राजीव भाई ने अपने तर्कों एवं व्याख्यानों से भारतीय एवं स्वदेशी संस्कृति ,धर्म कृषि या शिक्षा पद्धति  हर क्षेत्र में स्वदेशी और भारतीयता की महत्ता और प्रभुत्व  को पुनर्स्थापित करने का कार्य उस समय करने का संकल्प लिया जब भारत में भारतीयता के विचार को ख़तम करने का बिदेशी षड्यंत्र अपने चरम पर चल रहा था..काल चक्र अनवरत चलने के साथ साथ कभी कभी धैर्य परीक्षा की पराकाष्ठा करते हुए हमारे प्रति क्रूर हो जाता है..कुछ ऐसा ही हुआ और इसे देशद्रोही विरोधियों का षड्यंत्र कहें या नियति का विधान राजीव भाई हमारे बिच से चले गए..मगर स्वामी विवेकानंद जी की तरह अल्पायु होने के बाद भी राजीव भाई ने व्यक्तिगत एवं  सामाजिक जीवन के उन उच्च आदर्शों को स्थापित किया जिनपर चलकर मानवता धर्म देशभक्ति एवं समाज के पुनर्निर्माण की नीव रक्खी जानी है..
अब यक्ष प्रश्न यही है की राजीव भाई के बाद हम सब कैसे आन्दोलन को आगे ले जा सकते हैं. जैसा की राजीव भाई की परिकल्पना थी की एक संवृद्ध  भारत के लिए यहाँ के गांवों का संवृद्ध होना आवश्यक है..जब तक वो व्यक्ति जो १३० करोड के हिन्दुस्थान के आधारभूत आवश्यकता भोजन का प्रबंध करता वो खुद २ समय के भोजन से वंचित है,तब तक हिन्दुस्थान का विकास नहीं हो सकता..हम चाहें जितने भी आंकड़ों की बाजीगरी कर के विकास दर का दिवास्वप्न देख ले मगर यथार्थ के धरातल पर गरीब और गरीब होता जा रहा है और अमीर और अमीर..इसी व्यवस्था के खिलाफ शंखनाद के लिए मूल में ग्रामोत्थान  के तहत कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा ,कृषि के क्षेत्र में पारम्परिक कृषि को प्रोत्साहन देकर स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता के अवसर बढ़ाने होंगे..शायद इस क्षेत्र में हजारों के तादात में स्वयंसेवक संगठन  और बहुद्देशीय योजनायें चलायी जा रही हैं,मगर अपेक्षित परिणाम न देने का कारण शायद सामान्य जनमानस में इस विचारधारा के प्रति उदासीनता और बहुरष्ट्रीय कंपिनयों के मकडजाल में उलझ कर रह जाना..
इस व्यवस्था के परिवर्तन के लिए हमे खुद के व्यक्तित्व में स्वदेशी के "स्व" की भावना का मनन करना होगा उसकी महत्ता को समझना होगा.."स्व" जो मेरा है और स्वदेशी "जो मेरे देश का है,मेरे देश के लिए है"..हमें अपने अन्दर की हीन भावना और उस गुलाम मानसिकता को ख़तम करना होगाजो ये कहता है की अमेरिका यूरोप और पाश्चात्य देशों की हर चीज आधुनिक और वैज्ञानिक है और वहां की हर विधा हमारे समाज में प्रासंगिक हैचाहे वो नारी को एक ऐसे देश में ,नग्न भोग विलासिता के एक उत्पाद के रूप में अवस्थित करना हो ,जिस देश में नारी पूज्य,शील और शक्ति का समानार्थी मानी जाती रही है..हिन्दुस्थान शायद विश्व का एकमात्र देश होगा जहाँ आज तक गुलामी की भाषा अंग्रेजी बोलनातार्किक और आधुनिक माना जाता है और मातृभाषा हिंदी,जिसका एक एक शब्द वैज्ञानिक दृष्टि से अविष्कृत है ,बोलना पिछड़ेपन की निशानी माना जाता है..ऐसी  गुलाम मानसिकता विश्व के शायद ही किसी देश में देखने को मिले..इसी गुलाम मानसिकता को तोड़ने का प्रयास राजीव भाई के आन्दोलन का मूल है...यदि देश,व्यवस्था या व्यक्ति की विचारधारा को पंगु होने से बचाना है तो हमे सम्पूर्ण स्वदेशी के विचारों पर चल कर ही सफलता मिल सकती है.. विश्व का  इतिहास गवाह है की किसी भी देश का उत्थान उसकी परम्परा और संस्कृति से इतर जा कर नहीं हुआ है..
व्यवस्था परिवर्तन की राह हमेशा कठिन होती है और बार बार धैर्य परीक्षा लेती है ..सफ़र शायद बहुत लम्बा हो सकता है कठिन हो सकता है मगर अंतत लक्ष्य  प्राप्ति की ख़ुशी,उल्लास और संतुष्टि उससे भी मनोरम और आत्म सम्मान से परिपूर्ण ..राजीव भाई ने एक राह हम सभी को दिखाई और उस पवित्र कार्य  लिए अपना जीवन तक होम कर दिया..आज उनके जन्मदिवस  और पुण्य तिथि के अवसर पर आइये हम सभी आन्दोलन में अपना योगदान निर्धारित करे और एक स्वावलंबी एवं स्वदेशी भारत की नीव रखके उसे विश्वगुरु के पद पर प्रतिस्थापित करने में अपना योगदान दे .....शायद हम सभी की तरफ से ये एक सच्ची श्रधांजली होगी राजीव भाई और उनकी अनवरत जीवनपर्यंत साधना को...