बुधवार, 9 जनवरी 2013

बलात्कार : हिन्दुत्व के संस्कारों का अवमूल्यन या पाश्चात्य प्रभाव मे इस्लामी उद्दीपन


कई दिनो से पूरे देश मे बलात्कार के खिलाफ माहौल बना हुआ है (या बनाया गया है इसके लिए यहाँ क्लिक करे)। बलात्कार के खिलाफ माहौल बनाया गया हो या माहौल स्वयंस्फूर्त हिन्दुस्थानी जनता की सरकारी निकम्मेपन के खिलाफ विषादयुक्त अभिव्यक्ति हो दोनों परिस्थितियों मे एक बात पर बिलकुल ही संशय नहीं है की सामाजिक मर्यादाएं टूट रही हैं। इस पर एक विस्तृत परिचर्चा की आवश्यकता होगी । बलात्कार जैसे जघन्य कृत्य का किसी भी प्रकार से समर्थन या आरोपी का बचाव खुद को बलात्कारी की श्रेणी मे खड़ा करने सदृश्य होगा॥
मगर एक प्रश्न जिसपर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है वो की  मर्यादा पुरुषोत्तम राम के देश मे मर्यादा का हनन क्यू हो रहा है क्या तथाकथित सभ्य समाज ने अपनी मान्यताएँ बदल दी हैं या मान्यताएं टूट रही हैं। हालाँकि व्यभिचार हर समय कही न कही न्यूनाधिक मात्र मे उपस्थित रहा है फिर भी  यदि भारतीय परिवेश मे देखें तो मुगल काल मे इस प्रथा का कई कारणो से बहुत प्रचार हुआ इसका ज्वलंत स्तम्भ आगरे का मीना बाजार है जहाँ तथाकथित महान राजा अकबर ने सिर्फ महिलाओं के लिए एक बाजार बनवाया था बाजार पर उसकी सर्वदा नजर रहती और कोई खूबसूरत हिन्दू कन्या दिखते ही वो उसे अपने हरम मे रखने के लिए उसका शिकार करने निकाल पड़ता ॥ इसी मुगलकालीन खौफ से हिन्दू बहने अपन शील बचाने हेतु जौहर(समूहिक रूप से आत्मदाह) तक करने लगी ।
धीरे धीरे अंग्रेज़ आए और जैसा की उन्होने सर्वदा से नारी को एक उपभोग की वस्तु समझा है उन्होने मुगलो के क्रम को आधुनिकता का चोला पहनाते हुए नारी का मतलब “उपभोग और यौन इच्छा की पूर्ति की एक वस्तु”  के रूप मे प्रचारित किया वही इस्लामिक परिभाषा मे नारी “बच्चे पैदा करने की मशीन” से ज्यादा कुछ नहीं होती।
मगर अब ये प्रश्न उठता है की मुगल चले गए ,अंग्रेज़ चले गए फिर भी ये पाशविकता क्यू?? और दिल्ली के दामिनी(बदला हुआ नाम) बलात्कार एवं हत्याकांड मे हालाँकि बर्बरता की सीमा पार करते एक लहूलुहान महिला से  दो बार बलात्कार करने वाला और उसके यौनांगों मे लोहे की राड डालने वाला आरोपी मुस्लिम था फिर भी उसके साथ बलात्कार करने वाले 5 आरोपी हिन्दू थे ॥ मेरा प्रश्न यही है की हिन्दू बहुल हिंदुस्तान मे हिंदुओं मे ये पाशविकता कहाँ से आ रही है ? ये वही हिन्दू धर्म है जिसमे नारी को शक्ति का रूप माना जाता है “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता".. 
दरअसल समस्या भी यही से शुरू होती है मेरे समझ से नर और मादा मे स्वाभाविक लैंगिक आकर्षण होता है चाहे वो जानवर हो या मनुष्य तो फिर हम जानवरो से पृथक कैसे हुए। जानवरो से पृथक करते हैं हमारे संस्कार । संस्कार कहाँ से हमे मिलते हैं तो संस्कार हमे धर्म से मिलते हैं चाहे वो हिन्दू हो मुसलमान हो ईसाई ,पारसी या जैन हो ॥ जैसे जैसे धर्म का लोप होता है उस धर्म के संस्कारों का भी लोप होता है । और इसी के बाद मनुष्य अपनी मर्यादा भूलकर एक श्रेणी नीचे खड़ा हो जाता है और जानवरों की भाति यहाँ वहाँ भटकने लगता है । अगर आंकड़ों पर गौर करे तो पिछले दो दसक मे यौनजनित अपराधों की बाढ़ सी आ गयी है। तो क्या बदलाव आया हमारे समाज मे इन दो दसको मे?? यदि आप मैकाले को जानते हो तो उनकी दो सौ साल पहले  ब्रिटेन की संसद मे हिंदुस्थान के खिलाफ बनाई गयी योजना का कार्यान्वयन हुआ है । जैसा की पहले भी मैंने कहा है की अंग्रेज़ नारी को उपभोग की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं समझते अपने व्यापारिक और धार्मिक हितो के लिए यूरोप ने एक कार्यक्रम चलाया  जिसके दो लक्ष्य थे प्रथम –हिंदुस्थान को ईसाई राज्य बनाना दूसरा-हिंदुस्थान से हिन्दुत्व की अवधारणा को खतम करना। इसी के प्रथम कड़ी के तहत उन्होने बौद्धिक रूप से अंग्रेज़ हिंदूस्थानियों का एक वर्ग तैयार किया और उनके हाथ मे सत्ता सौप दी खुद वापस लौट गए । उनके इस कार्यक्रम मे इस्लामिक कठमुल्लों,कमुनिस्टो एवं हिन्दू धर्म के कैंसर सेकुलर गद्दारो ने खाद पानी का प्रबंध किया। इसी कार्यक्रम के अंतर्गत धीरे धीरे नारी को एक उपभोग की वस्तु के रूप मे समाज मे अवस्थित किए जाने लगा,ठीक उसी समानान्तर क्रम मे सुनुयोजित तरीके से हिन्दू धर्म संस्कारों का ह्रास किए जाने लगा ।
ये वही हिंदुस्थान है जिसकी मिट्टी मे कभी रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना ने जन्म लिया और नारीशक्ति का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया मगर आज परिस्थितियाँ बदली हुई है आज हिंदुस्थान की नारी सती सावित्री और लक्ष्मीबाई जैसे विशेषणों से अपने आप को अपमानित महसूस करती है और मेडोना और स्पाइस गर्ल उसकी पसंद बन गए हैं। आज का हिन्दुस्तानी युवा भगत सिंह और सावरकर को भूल के माइकल जैकसन,रिकी मार्टिन,शाहरुख खान मे अपना आदर्श ढूँढता है। उसे ये बताया गया की वेदों की ऋचाए बकवास है और माइकल जैकसन के गाने जीवन का लक्ष्य। सेक्स और अतृप्त लैंगिक इच्छाओं की की पाशविक रूप से पूर्ति करने का उद्देश समाज की नसो मे टेलीविज़न और संचार माध्यमों से भरा जा रहा है फिर हम कहते हैं की बलात्कार क्यू हो रहा है ??
कुछ तथाकथित बे सिर पैर की बाते करने वाले बुद्धिजीवी ये बकवास कर सकते हैं की क्या समस्या है पाश्चात्य सभ्यता मे वो भी एक जीवन पद्धति है ?? जी हाँ मुझे कोई समस्या नहीं मगर हर पद्धति की कुछ अच्छाइयों के साथ साथ बुराइयाँ भी नकारात्मक पार्श्व प्रभाव के रूप मे आती हैं। हमने यूरोप से नग्नता ले ली मगर हम भूल गए की यूरोप मे शिशुमंदिरों की तरह गर्भपात केंद्र भी खुले हैं। ये उनकी सभ्यता है की एक व्यक्ति कई महिलाओं के साथ सेक्स संबंध रखता है और इसे कोई बहुत बुरा नहीं कहता उनकी सभ्यता मे खुलापन होने के कारण सेक्स आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी महिला का आसानी से मिल जाना समान्य बात है। महिलाएं भी एक से ज्यादा पुरुषों के साथ संबंध रख सकती है । हमारे हिंदुस्थान मे सेक्स आवश्यकताओं का उद्दीपन या आवश्यकताओं को पाशविक रूप से उभरने के सभी साधन यूरोप से ला के भर दिये गए मगर पाशविक सेक्स आवश्यकताओं की पूर्ति का कोई तरीका नहीं है क्यूकी यहाँ यूरोप की तरह हर चौराहे पर लड़की नहीं मिल सकती सेक्स के लिए , न ही यहाँ यूरोप की तरह जानवरो के साथ सेक्स करना स्वीकार्य है और जब एक बार मनुष्य मनुष्यता को त्याग कर जानवर बन गया फिर उसे माँ,बहन,बेटी या राह चलती लड़की एक उपभोग की वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं नजर आएगी और उसकी परिनीति होती है वीभत्स कुकर्म बलात्कार के रूप मे॥ वस्तुतः ये असर है अधकचरी सभ्यता का हम नंगे घूमना चाहते हैं मगर कोई हमारी ओर न देखें ,हमने हर चौराहे पर दारू के अड्डे बना दिये मगर कोई भी गाड़ी शराब पी के न चलाये ऐसा चाहते हैं।
पाश्चात्य सभ्यता ने जो नग्नता परोसी है उसमे हर नौजवान के केन्द्रबिन्दु मे सेक्स होता जा रहा है और उसकी परिधि मे है भोग्या बना दी गयी नारी का वक्र और भूगोल । किसी भी एक घटना के लिए हम सिर्फ एक ही विचार या परिस्थिति को कारण नहीं बना सकते उसी प्रकार बलात्कार के लिए भी कई कारण उत्तरदाई है।उसमे धर्म से विमुख ,चरित्र से गिरे हुए, पथभ्रष्ट किए जा रहे भारतीय युवको का आत्मनियंत्रण खोना प्रमुख है। साथ ही साथ उसमे हमारी बहनो के पाश्चात्य परिधान चयन, सेक्स की इस आग मे वासना के घी का कार्य करता है। आप ही बताये एक महिला जब ऐसी जींस पहनती है जो उसके कमर के नीचे तक हो और उसमे उसके अंतःवस्त्र दिखते हो तो उस पर चरित्रहीन को तो छोड़िए समान्य व्यक्ति की क्या प्रतिक्रिया होगी? जब ब्रा और पैंटी मे नितंबो,कूल्हों , और यौनांगों का बेहूदा भौड़ा प्रदर्शन एक महिला करे तो उस पर आपत्ति क्यू न की जाए? लक्ष्मणरेखा तो खिचनी ही होगी इसे नंगा नाचने वाले मोरल पुलिसिंग का नाम दे तो यही सही। मगर ये नंगा नाच जब तक चलेगा तब तक कुछ हद तक महिलाएं भी अपनी उत्तरदायित्व से नहीं बच सकती । कुछ बाते जरा खुले रूप से लिखनी यहाँ जरूरी थी ॥ जहाँ इज्जत या मर्यादा की बात होती है ,वो महिला की ओर इंगित की जाती है कारण ये है की महिला प्राकृतिक रूप से इज्जत का प्रतिनिधित्व करती है।  चाहे वो जानवरो मे हो या इन्सानो मे । इसे किसी धर्म ने नहीं बनाया है अतः शील की रक्षा के एक कदम आगे आ के कार्य करना महिलाओं का भी कर्तव्य बनता है.  चाहे वो यौनांगों का कम से कम प्रदर्शन हो या किसी वाहियात इज्जत पर हाथ डालने वाले के खिलाफ प्रतिक्रिया करना।  आज पूनम पांडे और सन्नी लियोन जैसी वेश्या हमारे बेडरूम मे टीवी के माध्यम से पहुच चुकी है और बात सभी लोग आदर्शो की कर रहे हैं। जरा इन महिलाओं को देखें अब महिला आयोग और बुद्धिजीवी कहेंगे की मेरी नजर खराब है तो जी हाँ मुझे वही दिख रहा है जो ये दिखा रहे हैं । और तो और रेप का कैसे विरोध हो रहा है ये भी देखें।

हाँ मगर उसी प्रकार से युवको के लिए भी सीमा रेखा का निर्धारण करना होगा क्यूकी एक सत्य ये भी है की साड़ी पहनी हुई महिला या 2 माह की बच्ची से भी बलात्कार होता है ये इंगित करता है, पश्चिमी पाशविक मानसिकता का ॥ अभी रूस ने अमरीका के लोगो को रूसी  बच्चो को नौकर के रूप मे रखने के खिलाफ एक कानून बनाया है मूल यही है की वो लोग इतने पाशविक हो गए हैं की बच्चो को भी अपनी हवसपूर्ति का साधन बनाने लगे हैं वही हमारे समाज मे भी लाया जा रहा है यूरोपियन संस्कृति के साथ॥ 
 आज कल के युवा अमरीकन मानसिकता के साथ इंडिया गेट पर मोमबत्ती जलाके शाम को पब मे रात भर के लिए गर्लफ्रेंड ढूँढते हैं।  इस प्रकार हम एकतरफा महिला को दोष देकर अपने जबाबदेही से नहीं बच सकते ।एक उदाहरण देता हूँ जो की समान्य व्यक्तियों पर लागू है ढोंगी आदर्शवादियों और जानवरो पर नहीं । जब हम एक देशभक्ति सिनेमा देखते हैं तो देशभक्ति के भाव आता है मन मे, जब एक दुखद दृश्य देखते हैं तो दुख का भाव ,जब हसी देखते हैं तो हास्य का भाव आता है और कभी कभी वो तात्क्षणिक रूप से हमारे जीवन मे परिलक्षित होता है जैसे एक दुखद दृश्य के बाद रोते हुए लोग या एक हास्य के बाद ठहाके लगाते लोग। तो रोज नए नए विज्ञापनो से गानो से पिक्चरों से रंडीबाजी (यही उचित शब्द है) देखते देखते क्या इसका कोई अनुकरण नहीं करेगा॥ 
डियो लगाओ लड़की आप के बाहों मे
,चाकलेट खाओ लड़की पटाओ,बाइक लाओ लड़की पटाओ,साबुन बेचने के लिए लड़की को नंगा करो ,कंडोम बेचने के लिए लड़की को नंगा करो मतलब हर जगह महिला को नंगा करके हिंदुस्थान की नयी पीढ़ी को मानसिक रूप से बीमार सेक्स रोगी बना दो। हर विज्ञापन मे सेक्स परोसते लोग। जरा सोचिए ये सब जब एक बच्चा जन्म से 16 साल तक लगातार रोज रोज देखेगा तो होश संभालने के बाद अपनी सेक्स की आवश्यकता पूर्ति कैसे करेगा? जी हाँ वो एक पढ़ा लिखा मानसिक रूप से बीमार रोगी बन जाता है और जब संदर्भ हमारे समाज का हो जो न तो पूरी तरह हिंदुस्थानी विचारधारा छोड़ पाया न ही पूरी तरह अंग्रेज़ बन पाया, तो स्थिति और भी भयावह। एक विवेकानंद ने अकेले शिकागो ने हिंदुस्थान का झण्डा सर्वोपरि रक्खा क्यूकी उनके आदर्श थी वेद की ऋचाएं,गीता के श्लोक, और रामचरितमानस की चौपाइयाँ ॥ आज के युवाओं के कुछ आदर्श मंत्र जो दिन मे कई बार दोहराए जाते हैं और कंठस्थ है, 
कभी मेरे साथ एक रात गुजार, मै हूँ तंदूरी मुर्गी यार गटकाले मुझको अल्कोहल से , तू चीज बड़ी है मस्त मस्त,चोली के पीछे क्या है,शीला की जवानी, मै शराबी  मै शराबी .....अब जब चोली के पीछे पीछे गाते गाते लाखो लोगो मे से एक ने इस गाने को प्रयोगात्मक रूप दे दिया तो हो गया हंगामा ॥ 
 ये सिर्फ एक बानगी भर है। आज कल टीवी चेनेल कामक्रीड़ा को भी दिखाने लगे हैं और वो हम सब मजे से देखते हैं फिर इतना हँगामा क्यू बरपा है?? जिस हिसाब से हमारे हिन्दुत्व के संस्कारो का दमन और नग्नता की आँधी चल रही है उस संदर्भ बिन्दु से देखें तो ये घटनाएँ कुछ भी नहीं हैं यहाँ तो त्राहि त्राहि होना चाहिए॥ अगर अभी कुछ बचा है वो इसलिए क्यूकी ये संस्कार धीरे धीरे आते हैं और धीरे धीरे ही जाते हैं उल्टी गिनती शुरू हो गयी है यदि हम अब भी नहीं चेते तो सिर्फ दो ही रास्ते बचते हैं पूरी तरह यूरोपियन जानवर बने औ“सेक्स किसी के साथ, कभी भी, कहीं भी” को स्वीकार करे या यूरोपियन भारतीय संस्कारों का वर्णसंकर बनना है तो इंडिया गेट पर एक मोमबत्ती का कारख़ाना खुलवाने के लिए सरकार अर्जी दे दीजिये ...
हाँ एक और तरीका है जो बुद्धिजीवियों के गले न उतरे न ही तथाकथित अङ्ग्रेज़ी के गुलाम,सेकुलर और कमुनिस्ट द्रोही इसे स्वीकार कर पाये आइये एक बार फिर हिन्दुत्व की शरण मे चलते हैं कम से कम हिन्दुत्व मे शिवाजी विवेकानंद और रानीलक्ष्मीबाई के प्रमाण है न की विभिन्न  देशों की वेश्याओं को को सिरमौर बनाने के...
निर्णय आप का ॥
जय श्री राम

लेखक : आशुतोष नाथ तिवारी