मुझे ये जान के आश्चर्य होता है कि लोग विज्ञान को , आध्यात्म से दूर ले जाने वाली चीज समझे हैं।मेरा मानना है विज्ञान ही हमें सही मायने में आध्यात्मिक होने की सीख देती है। परमाणु में इलेक्टोनों की अद्भुद गति को देख के ऐसा लगता है जैसे भगवान् शिव का तांडव नृत्य ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में मौजूद है।"
-डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम( Wings of fire )
एक सवाल जो वैज्ञानिक जगत में बार बार उठता है कि किसी विद्वान् ने ये सृष्टि बनायी है या सृष्टि ने विद्वानों को बनाया है ?
ये सवाल बिलकुल मुर्गी और अंडे वाले सवाल की तरह है.
इस पोस्ट में प्राचीन ग्रंथों में वर्णित 'रचना प्रक्रिया Creation-Phenomenon' का संक्षेप में उल्लेख करने कि कोशिश कि गयी है और साथ ही साथ उनमें छिपे वैज्ञानिक तथ्यों को भी सामने लाने की कोशिश की गयी है.
स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारतीय दर्शन "विद्वान्" और "तत्व" दोनों विचारधाराओं के अलग चलते हुए "पुरुष" का वर्णन करता है. पुरुष -मतलब स्वयं , जो विद्वता का द्योतक है .
सृष्टि निर्माण के लिए दो क्षेत्र (Realms) अस्तित्व में हैं - निर्गुण क्षेत्र (Spiritual Realm) और आकार क्षेत्र (Material Realm).
निर्गुण क्षेत्र (Spiritual Realm) सभी शुद्ध आत्माओं का निवास स्थल है जो कि वैकुण्ठ ग्रह पर रहती हैं.
आकार आत्माएं ( आपकी और मेरी तरह ) आकार क्षेत्र(Material Realm) के विभिन्न ब्रह्मांडों , विभिन्न गैलेक्सियों, विभिन्न ग्रहों पर जन्म लेती हैं.
आकार क्षेत्र में भगवान् विष्णु के तीन रूप मौजूद हैं:
- श्री कारणओदक -शई महा विष्णु / नारायण
- श्री गर्भोदक-शई विष्णु / हिरण्यगर्भ
- श्री क्षीरोदक-शई विष्णु / परमात्मा
विष्णु का पहला रूप श्री कारणओदक-शई महा विष्णु हैं जो कि लौकिक जल (cosmic water) पर लेटे हुए हैं.'लौकिक जल' या कारण-ओदक (Causal ocean) (जो सब चीजों का कारण हैं) - विष्णु के ही शरीर से निर्गत होता है और आकार क्षेत्र (Material Realm) का निचला आधा हिस्सा इसी से भरा होता है.
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भगवान् के इस पहले रूप के साथ की आकार क्षेत्र में सृष्टि रचना की शुरुवात होती है.
Material nature की इस प्रथम अव्यक्त अवस्था को 'प्रधान' कहा जाता था है.
इस चरण तक कोई शब्द, कोई भाव नहीं थे, न ही कोई मन न ही कोई तत्व था, न ही जीवन न ही बुद्धि, न देवता न राक्षस, न ख़ुशी न दुख. इस समय तक न पृथ्वी थी न आकाश न जल न वायु न अग्नि, जीवन के कोई लक्षण जैसे जागना, सोना कुछ भी नही था .
इसीलिए ये ‘प्रधान’ Material Nature का मूल पदार्थ (Original Substance) था जो कि आगे की रचना का आधार बना.
'प्रधान' की तुलना हाल ही खोजे गए Higgs Boson या God Particle से की जा सकती है.
विज्ञान की दृष्टि में Higgs Boson ही मूल पदार्थ है जिस से सभी चीजों का निर्माण हुआ है.
God Particle-Higgs Boson: The original matter |
आकार क्षेत्र में रचना की शुरुवात :
यहाँ सृष्टि निर्माण के प्रकिया को विभिन्न चरणों में वर्गीकृत किया गया है जिन्हें सर्ग कहते हैं .
1. प्रथम सर्ग:
श्री महा विष्णु कि इच्छा के कारण 3 गुणों (सत्व, तमस और रजस) की साम्यावस्था में विक्षोभ उत्पन्न हुआ और इसकी वजह से एक अति सूक्ष्म पदार्थ (subtle imperceptible ) 'महत तत्व' का निर्माण हुआ.
इस अति सूक्ष्म पदार्थ को हम अपनी भौतिक इन्द्रियों से नहीं देख सकते और इसी महत तत्व से बुद्धि (Intellegence) के साथ साथ अहम् (Ego) का निर्माण हुआ.
यानी यहाँ पे एक सवाल का जवाब मिल जाता है. पुरुष ने ही Subtle Matter और Intelligence दोनों का निर्माण किया है और आगे चल कर इसी से 'मन' का निर्माण होता है.
2.द्वितीय सर्ग:
इस दूसरे चरण में 5 तत्वों का निर्माण होता है.जिन्हें पञ्च महाभूत कहते हैं.इन्ही के विभिन्न combinations से अनगिनत वस्तुओं का निर्माण होता है.
- निर्माण के लिए पर्याप्त space (अन्तरिक्ष)
- ठोस (थल)
- द्रव (जल)
- गैस (वायु)
- सबसे महत्वपूर्ण: 'ऊष्मा' (अग्नि)
हालांकि वैज्ञानिक आविष्कार ने सृष्टि निर्माण के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है लेकिन मूल कण Higgs Boson की खोज 2011 में हो पाना इस बात का सूचक है की ऐसे असंख्य तथ्य हैं जो अभी तक विज्ञान की दृष्टि में नहीं आये हैं. Higgs Boson से ही अन्य subatomic particles जैसे प्रोटोन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रान का निर्माण हुआ है . यहाँ तक की क्वार्क कण भी मूल नहीं हैं वे भी Higgs Boson से बने हुए हैं.
यानी प्रधान से महत तत्व का बनना और फिर महत तत्व से पञ्च महा भूत का बनाना वैज्ञानिक रूप से पुष्ट होता है.
अन्तरिक्ष(1) में उपस्थित पदार्थ(Mass) 'ठोस(2), द्रव(3) और गैस(4)' और ऊष्मा(Energy )(5).
3. तृतीय सर्ग:
तृतीय सर्ग में दसेंद्रियों (10 Organs) का निर्माण होता है.
जिनमें से 5 ज्ञानेन्द्रियाँ ( sensory organs ) और 5 कर्मेन्द्रियाँ (organs of action) कहलाती हैं.
ज्ञानेन्द्रियाँ : दृष्टि, श्रवण ,गंध , स्वाद और स्पर्श.
कर्मेन्द्रियाँ : मुख , हाथ , जनद, गुदा और पैर.
निर्माण के इन तीन चरणों को सामूहिक रूप से ‘प्रकृति सर्ग’ कहा जाता है है.
ये निर्माण ब्रह्मा के द्वारा नही हुया है बल्कि भगवान की Natural Energy की वजह से ये सब अस्तित्व में आया जिसे प्रकृति कहते हैं.
जैव विकास की प्रक्रिया का अध्ययन करने पे आपको पता चलेगा की दुनिया में आये शुरुवाती जीवों में सभी १० अंग नहीं थे. लेकिन जैसे जैसे विकास का प्रक्रम आगे बढ़ा एक के बाद एक इन्द्रियों का विकास होना शुरू हुआ. और आज जब हम सबसे विकसित प्रजाति को देखते हैं तो हम पाते हैं कि इनमें ये सभी १० इन्द्रियाँ पूर्ण विकसित रूप में हैं.
इसका अर्थ ये ही है इन सभी इन्द्रियों का विकास पहले से ही योजनाबद्ध था. प्रकृति में ये सारी इन्द्रियाँ मौजूद थी पर शुरूआती जीवो में विकसित नहीं हुयी थीं.
हमारे ब्रह्माण्ड का निर्माण :
सभी आधार भूत संरचनाओं के बाद हमारे ब्रह्माण्ड और अन्य ब्रह्माण्ड का निर्माण शुरू हुआ.
4. चतुर्थ सर्ग:
महा विष्णु के लौकिक शारीर (Cosmic-Body) पर मौजूद असंख्य छिद्रों से अनेक ब्रह्माण्ड निकले.
हिरन्यगर्भ नाम के एक केंद्र से संपूर्ण ब्रह्माण्ड के निकलने की इस घटना को विज्ञान में बिग बैंग कहा गया है।
भगवान् फिर अपने दूसरे रूप में (श्री गर्भोदक-शई विष्णु) प्रत्येक अंडाकार ब्रह्माण्ड में प्रवेश करते हैं.
विष्णु के इस दूसरे रूप में वे के बहुत बड़े सांप 'अनंत' पर लेटे हुए हैं. अनंत अपने अपने ब्रह्माण्ड का संरक्षक है.
विष्णु के इस रूप को हिरन्यगर्भ (Born-of-The-Golden-Egg) भी कहते हैं क्योंकि वे ब्रह्म अंड (Universal Egg) में आकार लेते हैं.
1000 महा युग के बाद में भगवान के नाभि से एक कमल की कलि निकलती है जिसमे से जन्म होता है 'ब्रह्मा' का.
'ब्रह्मा' : प्रत्येक ब्रह्मांड की पहली अमर इकाई ( Mortal Being ).
Shri Garbhodakshayi Vishnu becomes visible to Lord Brahma |
तब उन्होंने कमल के तने के साथ आगे बढ़ना तय किया किन्तु वहां भी उन्हें Dead End मिला.
फिर ब्रह्मा ने 100 महा युग तक ध्यान योग किया और अंत में उन्हें श्री गर्भोदक शई विष्णु नजर आये. विष्णु के द्वारा दी गयी दिव्य दृष्टि से ब्रह्मा को गर्भ सागर पे लेटे हुए नीले शरीर वाले विष्णु का दर्शन हुआ.
श्री हरी विष्णु ने तब ब्रह्मा को उनके होने का कारण बताया और ये भी बताया की उन्हें कितना बड़ा काम करना है.
ब्रह्मा निरुत्तर थे . ये बिलकुल उसी तरह की बात है जैसे आपके बॉस ने आपको एक बहुत बड़ा नया प्रोजेक्ट बनाने को कहा हो आपको ये भी न पता हो की ये प्रोजेक्ट है क्या और कैसे करना है ? सौभाग्य से यहाँ पे बॉस स्वयं आदि पुरुष भगवान् विष्णु थे जिन्होंने ब्रह्मा को बताया की सृजन का काम भगवान् के अपने शरीर के हिस्से की सहायता से शुरू किया जाए.
यहाँ से ब्रह्मा के द्वारा वास्तविक निर्माण का काम शुरू होता है.
प्रत्येक ब्रह्माण्ड के लिए विष्णु का अपना एक रूप था और साथ में ब्रह्मा का भी .
यानी वहां करोड़ों करोड़ों ब्रह्मा अपने अपने ब्रह्माण्ड के निर्माण कार्य में लगे हुए थे.
ब्रह्मा ने पहले निर्जीव चीजें बनायी जैसे ग्रह, पर्वत , भूमि इत्यादि. जिनमें स्वयं गति करने की क्षमता नहीं थी.
निर्माण के इस चौथे चरण को ‘मुख्य सर्ग’ कहते हैं.
5. पंचम सर्ग:
अगले चरण जिसे तिर्यक सर्ग कहते हैं में ब्रह्मा ने 6 विभिन्न प्रकार की vegetation का निर्माण किया. यहीं पे पेड़ पौधों वनस्पतियों की रचना हुयी. 28 प्रकार के पशुओं और 12 प्रकार के पक्षियों का निर्माण हुआ.
बिग बैंग थ्योरी के अनुसार एक केंद्र से सभी ब्रह्मांडों का निष्कासन हुआ. द्रव्य-ऊर्जा के प्रादर्श से सभी ग्रहों पर रासायनिक अभिक्रियाँ शुरू हुयी और निर्जीव चीजों का निर्माण शुरू हुआ. पहले छोटे अणु ( जैसे N2 , H2, O2 ,H2O,NH3 आदि) बने फिर थोड़े वृहद् अणु (जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि ) का निर्माण हुआ. इन वृहद् अणुओं से निम्न स्तरीय वनस्पति (जैसे कवक,शैवाल आदि ) बने और फिर वृहद् वनस्पतियाँ बनीं.
और इसके बाद पहले निम्न स्तरीय जंतु और उच्च स्तरीय जंतु बने.
जैव विकास के प्रक्रम का विस्तार से वर्णन अगली पोस्ट "दसावतार" में किया जायेगा.
6.छठा सर्ग:
छठे चरण में Demigods (यक्ष) का उद्भव हुआ. इसीलिए इसे देव सर्ग कहा गया है.
सभी प्रकार की दिव्य रचनाएं इसी चरण में बनीं:
सबसे पहले 4 चिरकालिक कुमारों (4 Eternal Kumaras ) आये. ब्रह्मा के बनाये हुए चार बच्चे ब्रह्मा के सामान ही चिरंजीवी हैं लेकिन वे ब्रह्मा के बजाए विष्णु के अनुयायी बने.
इस बात से क्रोधित ब्रह्मा के ललाट से गहरे लाल और नील रंग के शिशु का जन्म हुआ.
इस चिल्लाते-रोते शिशु का नाम रखा गया - रूद्र .
लेकिन रूद्र ने भी तपस (Penance) का रास्ता अपनाना तय किया. इस बात से ब्रह्मा निराश हुए. लेकिन अंत में उन्होंने उसे अपनी सहायता करने के लिए मना लिया. तब रूद्र स्वयं के समान ११ भागों में विभाजित हो गया.
सृष्टि निर्माण के समय ये सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि ऎसी इकाई बनायी जाए जो गुणन (जनन) करने की क्षमता रखती हो. शुरुवात में बने चारों मुख्य घटक - जल, प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट और वसा जनन करने की क्षमता नहीं रखते थे.
इसीलिए इसके बाद ऐसी इकाई बनी जिसमें जनन के शुरूआती लक्षण दिखाई दिए.
'बैक्टीरिया' ऐसे जीव जिनमें Binary Fission होना संभव हुआ. यानी अपने ही सामान अनेक जीवों में विभाजित होने की क्षमता. यहाँ कायिक जनन की शुरुवात हुयी.
ब्रह्मा के अनुरोध पर रूद्र अर्धनारीश्वर के रूप में आये और मादा सिद्धांत का जन्म हुआ जिसका नाम था रुद्राणी .
बैक्टीरिया के बनने तक उसमें नर और मादा का विभेद नहीं था किन्तु कुछ उच्च स्तरीय बैक्टीरिया में + स्ट्रेन और - स्ट्रेन बनने लग गयी. यहाँ अलैंगिक जनन की शुरुवात हुयी.और फिर थोड़ी और विकसित प्रजातियों में पूर्ण रूप से नर और मादा का विभेद हो गया.
अपने बनाई कृति रूद्र को संख्या में बढ़ते देख कर ब्रह्मा को कुछ संतुष्टि तो मिली , रूद्र के इस भयंकर रूप के कारण उसे भगवान की विनाशक शक्ति (Supreme Lord's power of Destruction) के रूप में देखा गया.
जिस तरह से जगत में जीवों का जन्म आवश्यक है उसी तरह से उनका विनाश भी आवश्यक है.आज हम देखते हैं की पृथ्वी पर असंख्य जीव जंतु पैदा होते हैं अगर इनका विनाश न होता तो पृथ्वी कई सतह अनगिनत जीवों और लाशों से भर गयी होती.किन्तु बैक्टीरिया ऐसे जीव हैं जो हर समय अन्य जीवों का विनाश करने में लगे रहते हैं. और मृत शरीरों का भक्षण करते पृथ्वी को साफ़ बनाये रखते हैं.
Bacteria:The destructor |
ब्रह्मा को यह महसूस हुआ की रूद्र की संतान वो नहीं हैं जो वे बनाना चाहते थे तब उन्होंने १० मानसपुत्र बनाए.
मन निर्मित ब्रह्मा के ये १० मानस पुत्र थे- अत्री, अंगीरस, अथर्व, भृगु, दक्ष, मरीचि, पुलह, पुलत्स्य, वसिष्ठ और सबसे छोटा नारद .
जब इन १० पुत्रों ने भी विकास की प्रक्रिया का हिस्सा बनने की बजाय कुमारों के रास्ते पे चलना तय किया तब ब्रह्मा फिर नकारात्मक ऊर्जा से भर गए.
इसके परिणाम स्वरुप ब्रह्मा ने असुरों का निर्माण किया. ब्रह्मा ने इन्हें इनके तामसिक रास्ते पे चलने दिया, ये रात्री समय का निर्माण था.
अपनी शक्तियों को केन्द्रित करके ब्रह्मा ने फिर से सात्विक रास्ता अपनाते हुए देवताओं का निर्माण किया. प्रत्येक देव आकार निर्माण के विभिन्न घटक के संरक्षक बने. ये दिन के समय का निर्माण था.
Devas or Demigods |
इसके बाद ब्रह्मा ने पित्र का निर्माण किया. और फिर अन्य देवी देवताओं जैसे गायत्री , सरस्वती , प्रसूति , चार वेद, भावनाएं , संगीत और ऋषि कर्मकांड.
प्रसूति पहले मानस पुत्र यक्ष की पत्नी बनी और यहीं से लैंगिक जनन की शुरुवात हुयी.
इसी के साथ देव सर्ग समाप्ति की ओर बढ़ा ,ब्रह्मा ने जो काफी थक चुके थे अब एक विराम का निर्णय किया. वे अपने अब तक के निर्माण कार्य को देखने लगे और उन्होंने तीसरा रूप लिया राजसिक (mode-of-passion).
इसी समय उन्होंने अपने ही समान दिखने वाली महान कृति का निर्माण किया , जिसका नाम था 'स्वम्भू मनु' . पहला मानव जो कि 'काया' के साथ पैदा हुआ (का- ब्रह्मा , या- रूप).
ये बात बहुत ही रोचक है कि बाइबिल भी यही घटना लिखी है 'Man was created in the Image of His Maker!'
यह भी रोचक है कि जर्मनी की जन जातियां अपने पूर्वज को मानुष कहती है.
मनु शब्द अंग्रेजी के शब्द 'Man' का भी मूल है और हिंदी के शब्द 'मनुष्य' का भी मूल है.
मनु के साथ एक नारी भी बनाई गयी थी जिसका नाम था सतरूपा. ब्रह्मा ने मनु और सतरूपा को पृथ्वी ग्रह पे भेज दिया.
पृथ्वी पे मनु और सतरूपा के संततियों ने संपूर्ण ग्रह पर पीढ़ी दर पीढ़ी गुणन करना शुरू किया जो आज तक चल रहा है.
7.सांतवे सर्ग में मनुष्य के विकास का वर्णन है इसलिए इसे मनुष्य सर्ग कहते हैं
8.आंठ्वे सर्ग जो की अनुग्रह सर्ग के नाम से जाना जाता है में अन्य प्रजातियों का वर्णन है
9.नवें और अंतिम सर्ग में कुमारों के पुनरागमन की कहानी लिखी है.
और यहाँ पर ब्रह्मा के द्वारा निर्माण की प्रक्रिया का अंत होता है.
एक पाठक के रूप में आप इस पोस्ट को पढ़ते हुए और एक लेखक के रूप में मैं इस पोस्ट को लिखते हुए कितना थक गए हैं , इससे हम ब्रह्मा की उस समय की स्थिति की कल्पना कर सकते हैं.
समाप्ति से पहले विष्णु के तीसरे रूप की बात कर लेते हैं -श्री क्षीरोदक शयी विष्णु जो निर्माण की हर इकाई (परमाणु) में परमात्मा के रूप में मौजूद हैं.समाप्ति से पहले विष्णु के तीसरे रूप की बात कर लेते हैं -श्री क्षीरोदक शयी विष्णु जो निर्माण की हर इकाई (परमाणु) में परमात्मा के रूप में मौजूद हैं.
Lord Vishnu: Present in every Atom |