सामान्यतया भारत
में जब हम जब आजादी के बाद के युद्धों की बात करतें है तो हमारे जहन में पाकिस्तान
के साथ के चार युद्ध (1947,1965,1971,1999) एवं चीन के साथ युद्ध (1962
सन) याद आता है.।
आज आप से भारत और पुर्तगाल के बीच हुए युद्ध के बारे मे कुछ विचार
आप सब से साझा करता हूँ जो सन 1961 में गोवा की आजादी के लिए हुआ, और हमारी भारतीय सेना ने विजय पताका फहराते हुए गोवा को पुर्तगालियों के 450
साल पुराने कब्जे से मुक्त कराया।
Goa Map |
ये वही गोवा है
जिसे हम हिंदुस्तान और बाहर के लोग भी अपना प्रमुख पर्यटन स्थल मानतें है। इस
युद्ध की पृष्ठभूमि में जाने से पहले चलिए संक्षेप में गोवा के इतिहास पर एक नजर
डाल लें ।
गोवा का प्रथम
वरदान हिन्दू धर्म में रामायण काल में मिलता है । पौराणिक लेखों के अनुसार
सरस्वती नदी के सुख जाने के कारण उसके किनारे बसे हुए ब्राम्हणों के पुनर्वास के
लिये परशुराम ऋषि ने समंदर में शर संधान किया।ऋषि का सम्मान करते हुए समंदर ने
उस स्थान को अपने क्षेत्र से मुक्त कर दिया। ये पूरा स्थान कोंकण कहलाया और इसका
दक्षिण भाग गोपपूरी कहलाया जो वर्तमान में गोवा है।
हिंदुस्थान के
अन्य हिस्सों की तरह गोवा पर भी कालांतर में मौर्य चालुक्य शाक्य और कदम्ब वंशो ने
शासन किया। कदम्ब वंश के बाद मुस्लिम शासन हुआ फिर हिन्दू राजाओं ने गोवा पर
अधिकार किया. 1469-1471 के बीच ये राज्य ब्राम्हण शासन के अंतर्गत
आया,सन 1483-84 में गोवा मुस्लिम शासक
युशुफ आदिल खान के अधिकार में आ गया, फिर लगभग 27 वर्ष के
मुस्लिम शासन के बाद सन 1510 में पुर्तगाली अलफांसो द अल्बुबर्क
ने यहाँ आक्रमण कर अधिकार कर लिया । सन 1510 में गोवा पर
कब्जे के लिये युशुफ आदिल खान और अलफांसो द अल्बुबर्क की सेनाओ मे कई बार युद्ध
हुआ और अंततः अंततोगत्वा अलफांसो द अल्बुबर्क का कब्ज़ा गोवा पर हो गया ।
आप इसे
पुर्तगालियों का एशिया में पहला राजनयिक व सामरिक दृष्टी से महत्वपूर्ण केंद्रीय
स्थल भी कह सकते है इसके बाद पुर्तगाल ने गोवा पर अपना कब्ज़ा मजबूत करने के लिये
यहाँ नौसेना के अड्डे बनायें। गोवा के विकास के लिये पुर्तगाली शासकों ने
प्रचुर धन खर्च किया,गोवा का सामरिक महत्त्व देखते हुए इसे एशिया में पुर्तगाल
शसित क्षेत्रों की राजधानी बना दिया गया।
अंग्रेजों के
भारत आगमन तक गोवा एक संवृद्ध राज्य बन चुका था, तथा पुर्तगालियों
ने पूरी तरह गोवा को अपने साम्राज्य का एक हिस्सा बना लिया ।
पुर्तगाल में एक
कहावत आज भी है की "जिसने गोवा देख लिया उसे लिस्बन (पुर्तगाल की वर्तमान
राजधानी) देखने की नहीं जरुरत है "
सन 1900 तक गोवा अपने विकास के चरम पर था. उसके बाद के वर्षों में यहाँ हैजा ,प्लेग जैसी महामारियां शुरू हुई। जिसने लगभग पुरे गोवा को बर्बाद कर
दिया अनेको हमले हुए मगर जैसे तैसे गोवा पर पुर्तगाली कब्ज़ा बरकरार रहा 1809
- 1815 के बीच नेपोलियन ने पुर्तगाल पर कब्ज़ा कर लिया और एंग्लो
पुर्तगाली गठबंधन के बाद गोवा स्वतः ही अंग्रेजी अधिकार क्षेत्र में आ गया। 1815
से 1947 (भारत की आजादी) तक गोवा में अंग्रेजो
का शासन रहा और पुरे हिंदुस्तान की तरह अंग्रेजों ने वहां के भी संसाधनों का जमकर
शोषण किया।
इससे पूर्व गोवा
के राष्ट्रवादियों ने 1928 में मुंबई में गोवा कांग्रेस समिति का गठन किया, यह डॉ. टी.बी. चुन्हा की अध्यक्षता में किया गया था डॉ. टी.बी.
चुन्हा को गोवा के राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है। बाद दो
दशकों मे कुछ खास नहीं हुआ,सन 1946 में एक प्रमुख भारतीय
समाजवादी, डॉ. राम मनोहर लोहिया, गोवा
में पहुंचे उन्होंने नागरिक अधिकारों के हनन के विरोध में गोवा में सभा करने की
चेतावनी दे डाली। मगर इस विरोध का दमन करते हुए उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया
गया॰
गोवा सत्याग्रह (GOA MARCH) |
भारत पुर्तगाल
युद्ध की नींव भी अंग्रेजो ने डाली। आजादी के समय पंडित जवाहर लाल नेहरु ने ये
मांग रक्खी की गोवा को भारत के अधिकार में दे दिया जाए। वहीँ पुर्तगाल ने भी गोवा
पर अपना दावा ठोक दिया। अंग्रेजो की दोगली नीति व पुर्तगाल के दबाव के कारण गोवा
पुर्तगाल को हस्तांतरित कर दिया गया. गोवा पर पुर्तगाली कब्जे का तर्क यह था की
गोवा पर पुर्तगाल के अधिकार के समय कोई भारत गणराज्य अस्तित्व में नहीं था.
गोवा मुक्ति के
लिए सन तक 1950 प्रदर्शन जोर पकड़ चुका था। 1954 में भारत समर्थक गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा दादर और नगर हवेली
को मुक्त करा लिया गया और भारत समर्थक प्रशासन बना कर क्रांति को और आगे बढाया। ठीक उसी समय भारत ने गोवा जाने पर वीसा का नियम लगा दिया.।
15 अगस्त 1955 में गोवा को
पुर्तगाल शासन से मुक्त करने के लिये 3000 सत्याग्रहियों ने
आन्दोलन शुरू किया गोवा की आजादी की चिंगारी ने मलयानिल का रूप तब ले लिया जब
पुर्तगाली सेनाओं ने निहत्थे सत्याग्रहियों पर गोली चला दी और लगभग 30 अहिंसक प्रदर्शनकारी मारे गए। इस घटना ने गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त
कराने के लिए एक नयी उर्जा व परिस्थिति प्रदान कर दी,तनाव बढ़ता देख भारत ने 1955
में पुर्तगाल से सारे राजनयिक सम्बन्ध ख़त्म कर दिए। भारत ने कुछ
और प्रतिबन्ध भी लगाये मगर पाकिस्तान ने जन्मजात मक्कारी दिखाते हुए पुर्तगाल का
सहयोग कर इन प्रतिबंधो का असर काफी हद तक कम कर दिया॥
सन 1956,1967 में गोवा में अपने भविष्य निर्धारण के लिए जनमत संग्रह की बात रक्खी गयी जो
पुर्तगालियों ने नकार दिया, इस तरह अगले पाँच वर्षों तक क्रांति चलती रही
पुर्तगाल ने गोवा से अपना कब्ज़ा नहीं छोड़ा। इस बीच पुर्तगाली प्रधानमंत्री
अंटोनियो द ओलिवेरा को ये मालूम हो चुका था की भारत कभी भी गोवा मुक्ति के लिए
सैनिक कार्यवाही कर सकता है । उसने सजगता दिखाते हुए ब्राज़ील इंग्लैंड
अमेरिका और मैक्सिको के सरकारों को मध्यस्थता के लिए कहा, बात बनती न देख
पुर्तगाल संयुक्त राष्ट्र में भी गया वह भी उसकी दाल नहीं गली। अमेरिका ने अपनी
दोगली नीति अपनाई रक्खी। शुरू में वो भारत के साथ, फिर
मध्यस्थ रहा मगर भारतीय सैनिक कार्यवाही की स्थिति में उसने संयुक्त राष्ट्र में
भारत का साथ न देने की धमकी दे डाली ।
मगर अब जनांदोलन
को दबाना इन शक्तियों के वश में नहीं था और 1961 में भारतीय सरकार ने
पुर्तगाल और दुनिया को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा की "गोवा का पुर्तगाली
शासन में रहना अब असंभव है"।
पुर्तगाली शासन
के ताबूत में की घटना थी 24 नवम्बर 1961 को पुर्तगाली
सेनाओं का भारतीय नौसैनिक जहाज पर हमला और दो मौतें। भारत के पास भी अब सैनिक
कार्यवाही का अच्छा कारण था और जन समर्थन भी।
भारत ने गोवा को
पुर्तगालियों से मुक्त करने के लिए आपरेशन विजय शुरू किया. इसकी कमान भारतीय
सेना के दक्षिणी कमान को सौंप दिया गया जिसमें 1 मराठा लाइट
इन्फंट्री 20 वीं राजपूत और 4 मद्रास
बटालियन शामिल हुईं। युद्ध में थल सेना की कमान मेजर जनरल
के.पी. कैंथ (17 वीं इन्फेंट्री डिविजन) को दी गयी॰
IAF in GOA War |
11 दिसम्बर 1961 को ही 50
पैरा ब्रिगेड ने ब्रिगेडियर सगत सिंह के नेतृत्व में ने पंजिम पर
हमला कर दिया दूसरी ओर मर्मागोवा.. पर 63 ब्रिगेड ने पूर्व
से हमला बोला भारत के पश्चिमी वायु कमान के एयर वाइस मार्शल एलरिक पिंटो को युद्ध
में वायु सेना कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया. भारतीय सेना ने चारो ओर से,
जल थल एवं वायु सेना की उस समय की आधुनिकतम तैयारियों के दिसम्बर 17-18
साथ की रात में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्यवाही शुरू कर दी
..
"उधर पुर्तागली रक्षा मंत्री ने वहां के
प्रधानमंत्री को ये ये बता दिया की अब गोवा पर कब्ज़ा रखना नामुमकिन है. इसके
बाद भी पुर्तगाली प्रधनमंत्री ने तत्कालीन गवर्नर को ये सन्देश भेजा की
"ये कहना थोडा
कठिन है की युद्ध में आगे बढ़ने का मतलब हमारा सम्पूर्ण बलिदान। लेकिन राष्ट्र
उच्चतम परंपराओं को बनाए रखने के लिए और राष्ट्र के भविष्य व सेवा के लिए बलिदान
ही एकमात्र रास्ता है पुर्तगाली प्रधानमंत्री ने आगे कहा की मुझे नहीं लगता की
पुर्तगाली सैनिकों और नाविकों पर कोई विजय प्राप्त कर सकता है,वो या तो विजयी
होंगे या खून के आखिरी कतरे तक लड़ेंगे। इसके साथ ही उनके लिए एक आदेश आया की संघर्ष
विराम या संधि का कोई प्रस्ताव नहीं माना जाएगा आखरी पुर्तगाली सैनिक के जीवित
रहने तक युद्ध जारी रहेगा। "
वही पुर्तगाली
प्रधानमंत्री ने तत्कालीन गवर्नर मैं ये भी कहा की युद्ध मैं 7-8 दिनों तक खीच लो तब तक पुर्तगाल अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से दबाव डलवाकर
भारत को रोक देगा । पुर्तगाली सेना
की गोवा में 4000 प्रशिक्षित और 2000 अर्धप्रशिक्षित
या सामान्य सैनिको की क्षमता थी लगभग। पुर्तगाल से कुछ गोला बारूद 17 दिसम्बर को वायु सेना द्वारा भेजने की योजना बाकी देशों के असहयोग के कारण
पुर्तगाल को स्थगित करनी पड़ी क्यूंकि पुर्तगाली सैन्य विमान को किसी भी देश ने
उतरने और ईंधन भरने की अनुमति नहीं दी।
पुर्तगाली गवर्नर मैनुएल वसेलो ई सिल्वा |
हालाकिं खाने की
आपूर्ति करने वाले विमान के साथ कुछ पुर्तगाल ने कुछ गोला बारूद व ग्रेनेड गोवा
में भेज दिया.. गोवा की पुर्तगाल में 2-3 असैनिक विमान व 2-3 एंटी एयर
क्राफ्ट गन थे । युद्ध की स्थिति में पुर्तगाली प्रधानमंत्री ने गोवा में
पुर्तगाल के सभी भी गैर सैनिक विरासतों को नष्ट करने का आदेश दे दिया गया जिसे बाद
में पुर्तगाली गवर्नर मैनुएल वसेलो ई सिल्वा ने ये कहते हुए नकार दिया की "मैं
पूरब में अपनी महानता के सबूत नष्ट नहीं कर सकता। "
युद्ध के 10 दिन पहले ही गोवन पुर्तगाली परिवार लिस्बन जाने को बेताब थे। ने किसी भी
यात्री को लिस्बन जाने वाले पोत में जाने से मना किया लेकिन गवर्नर मैनुएल वसेलो ई
सिल्वा ने लगभग 750 लोगों को संभावित खतरे को देखते हुए पुर्तगाल भेज
दिया .
18 दिसम्बर को दीव में विंग कमांडर मिकी ब्लेक ने हमला
किया और दीव में पुर्तगाली सेना के मुख्या स्थलों को तबाह कर दिया,वहां का रनवे
भी नष्ट कर दिया। कुछ नौकाएं पुर्तगाली गोला बारूद लेकर दीव से भागने का प्रयास
कर रही थी वो भारतीय वायु सेना ने नष्ट कर दिया,बाद में पुरे दिन भारतीय सेना
के वायुयान आकाश में मंडराते रहे और थल सनिकों को आवश्यक सहयोग देते रहे॥
18 दिसम्बर को भारतीय वायु सेना ने गोवा में भी धावा
बोला और विंग कमांडर एन बी मेमन एवं विंग कमांडर सुरिंदर सिंह ने अलग अलग गोवा के
डाबोलिम हवाई अड्डे पर भीषण बम वर्षा कर के उसके रनवे को बर्बाद कर डाला । बाम्बोलिन हवाई अड्डे का वायरलेस केंद्र भी हवाई हमले में ध्वस्त हो गया। वहीँ गोवा के दो
विमान रात को पाकिस्तान भाग गए । अब तक
भारतीय वायु सेना का गोवा के पूरे आकाश पर कब्ज़ा हो चुका था । भारतीय जल थल और
वायु सेना के चौतरफा हमलों से पुर्तगाली देना की कमर टूट गयी। 2 सिख लाइट इन्फैंट्री 19 दिसम्बर
1961 की सुबह पणजी के सचिवालय भवन पर तिरंगा फहरा दिया ।
अंततोगत्वा
पुर्तगालियों ने घुटने टेकते हुए वास्को के एक सेना के शिविर में आत्मसमर्पण कर
दिया ।
पुर्तगलियों का समर्पण |
पुर्तगाली गवर्नर
मैनुएल वसेलो ई सिल्वा ने पुर्तगाल की तरफ से दस्तावेजों पर दस्तखत किये और भारत
की तरफ से पुर्तगालियों आत्मसमर्पण को स्वीकार करने वाले दस्तावेजों परब्रिगेडियर
एस एस ढिल्लों ने दस्तखत किये।
ऑपरेशन विजय में
भारत के जवान शहीद हुए 35, और 55 घायल जिसमें अगुड़ा
किले पर कब्ज़ा करते हुए मेजर एस. एस संधू भी शामिल थे। मेजर एस एस संधू वो सबसे उच्च पद के अधिकारी थे जो इस युद्ध
में शहीद हुए,उधर पुर्तगाली सेना में भी लगभग इतने ही लोग हताहत व घायल हुए।
ऑपरेशन विजय 40 घंटे का था, भारतीय सेना के इस 40 घंटे के युद्ध
ने गोवा पर 450 साल से चले आ रहे पुर्तगाली शासन का अंत किया
और गोवा भारतीय गणतंत्र का एक अंग बना।
POW CAMP (युद्धबंदी शिविर) |
गोवा युद्ध मे जीत का जश्न |
बाद में सन 1962 में
वहां चुनाव और २० दिसम्बर १९६२ को श्री दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री
बने। गोवा के
महाराष्ट्र में विलय की भी बात चली क्यूकी गोवा महाराष्ट्र के पड़ोस में था. १९६७ में जनमत संग्रह हुआ और गोवा के लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में
रहना पसंद किया। कालांतर में ३० मई १९८७ को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और
गोवा भारतीय गणराज्य का २५वाँ राज्य बना। आज गोवा हमरे देश का सर्वदिक पसंद किये
जाने वाला पर्यटन स्थल है।
आज हम सभी लोग शायद अमेरिका से लेकर मिश्र में होने वाली
क्रांतियों व बदलावों का विश्लेषण तो करते रहतें है मगर अपने देश की उस महान
क्रांति को भूल जातें है जिसने ४० घंटें में ४५० साल पुरानी गुलामी को ख़त्म कर
दिया।
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