गुरुवार, 22 नवंबर 2012

रामायण के प्रमुख पात्र एवं उनका परिचय



(ये जानकारी सिर्फ इसलिए दी जा रही है जिससे की आप रामायण को आसानी से और अच्छे से समझ सकें !)
                  
दशरथ रघुवंशी राजा इन्द्र के मित्र कोशल के राजा तथा राजधानी एवं निवास अयोध्या ।
कौशल्या दशरथ की बङी रानीराम की माता ।
सुमित्रा - दशरथ की मझली रानीलक्ष्मण तथा शत्रुध्न की माता ।
कैकयी - दशरथ की छोटी रानीभरत की माता ।
सीता जनकपुत्रीराम की पत्नी ।
उर्मिला जनकपुत्रीलक्ष्मण की पत्नी ।
मांडवी जनक के भाई कुशध्वज की पुत्रीभरत की पत्नी ।       
श्रुतकीर्ति - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्रीशत्रुध्न की पत्नी ।
राम दशरथ तथा कौशल्या के पुत्रसीता के पति ।  
लक्ष्मण - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्रउर्मिला के पति ।
भरत दशरथ तथा कैकयी के पुत्रमांडवी के पति ।
शत्रुध्न - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्रश्रुतकीर्ति के पतिमथुरा के राजा लवणासूर के संहारक ।
शान्ता दशरथ की पुत्रीराम भगिनी ।
बाली किश्कंधा (पंपापुर) का राजारावण का मित्र तथा साढ़ूसाठ हजार हाथीयो का बल ।
सुग्रीव बाली का छोटा भाईजिनकी हनुमान जी ने मित्रता करवाई ।
तारा बाली की पत्नीअंगद की मातापंचकन्याओ मे स्थान ।
रुमा सुग्रीव की पत्नीसुषेण वैध की बेटी ।
अंगद बाली तथा तारा का पुत्र ।  
रावण ऋषि पुलस्त्य का पौत्रविश्रवा तथा पुष्पोत्कटा का पुत्र ।
कुंभकर्ण रावण तथा कुंभिनसी का भाईविश्रवा तथा पुष्पोत्कटा का पुत्र ।       
कुंभिनसी रावण तथा कूंभकर्ण की भगिनीविश्रवा तथा पुष्पोत्कटा की पुत्री ।
विश्रवा - ऋषि पुलस्त्य का पुत्रपुष्पोत्कटा-राका-मालिनी का पति ।
विभीषण विश्रवा तथा राका का पुत्रराम का भक्त ।
पुष्पोत्कटा विश्रवा की पत्नीरावणकुंभकर्ण तथा कुंभिनसी की माता ।
राका विश्रवा की पत्नीविभीषण की माता ।
मालिनी - विश्रवा की तीसरी पत्नीखर-दूषण त्रिसरा तथा शूर्पणखा की माता । 
त्रिसरा विश्रवा तथा मालिनी का पुत्रखर-दूषण का भाई एवं सेनापति ।
शूर्पणखा - विश्रवा तथा मालिनी की पुत्रीखर-दूसन एवं त्रिसरा की भगिनीविंध्य क्षेत्र मे निवास ।
मंदोदरी रावण की पत्नीतारा की भगिनीपंचकन्याओ मे स्थान ।
मेघनाद रावण का पुत्र इंद्रजीतल्क्ष्मन द्वारा वध । 
दधिमुख सुग्रीव का मामा ।
ताङका राक्षसीमिथिला के वनो मे निवासराम द्वारा वध ।
मारीची ताङका का पुत्रराम द्वारा वध (स्वर्ण मर्ग के रूप मे ) ।
सुबाहू मारीची का साथी राक्षसराम द्वारा वध ।
सुरसा सर्पो की माता ।
त्रिजटा अशोक वाटिका निवासिनी राक्षसीरामभक्तसीता से अनुराग ।
प्रहस्त रावण का सेनापतिराम-रावण युद्ध मे मृत्यु ।   
विराध दंडक वन मे निवासराम लक्ष्मण द्वारा मिलकर वध ।
शंभासुर राक्षसइन्द्र द्वरा वधइसी से युद्ध करते समय कैकेई ने दशरथ को बचाया था तथा दशरथ ने वरदान देने को कहा ।
सिंहिका लंका के निकट रहने वाली राक्षसीछाया को पकङकर खाती थी ।
कबंद दण्डक वन का दैत्यइन्द्र के प्रहार से इसका सर धङ मे घुस गयाबाहें बहुत लम्बी थीराम-लक्ष्मण को पकङाराम- लक्ष्मण ने गङ्ढा खोद कर उसमे गाङ दिया ।
जामबंत रीछ थेरीछ सेना के सेनापति ।
नल सुग्रीव की सेना का वानरवीर ।
नील सुग्रीव का सेनापति जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थेसेतुबंध की रचना की थी ।  
नल और नील – सुग्रीव सेना मे इंजीनियर व राम सेतु निर्माण मे महान योगदान । (विश्व के प्रथम इंटरनेशनल हाईवे “रामसेतु” के आर्किटेक्ट इंजीनियर)
शबरी अस्पृश्य जाती की रामभक्तमतंग ऋषि के आश्रम मे राम-लक्ष्मण-सीता का आतिथ्य सत्कार ।
संपाती जटायु का बङा भाईवानरो को सीता का पता बताया ।
जटायु  रामभक्त पक्षीरावण द्वारा वधराम द्वारा अंतिम संस्कार ।
गृह – श्रंगवेरपुर के निषादों का राजाराम का स्वागत किया था ।
हनुमान पवन के पुत्रराम भक्तसुग्रीव के मित्र ।
सुषेण वैध – सुग्रीव के ससुर ।    
केवट नाविकराम-लक्ष्मण-सीता को गंगा पार करायी ।
शुक्र-सारण रावण के मंत्री जो बंदर बनकर राम की सेना का भेद जानने गये ।
अगस्त्य पहले आर्य ऋषि जिन्होने विन्ध्याचल पर्वत पार किया था तथा दक्षिण भारत गये ।
गौतम तपस्वी ऋषिअहल्या के पतिआश्रम मिथिला के निकट ।
अहल्या - गौतम ऋषि की पत्नीइन्द्र द्वारा छलित तथा पति द्वारा शापितराम ने शाप मुक्त कियापंचकन्याओ मे स्थान ।
ऋण्यश्रंग – ऋषि जिन्होने दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कटाया था ।
सुतीक्ष्ण अगस्त्य ऋषि के शिष्यएक ऋषि ।
मतंग ऋषिपंपासुर के निकट आश्रमयही शबरी भी रहती थी ।
वसिष्ठ  अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओ के गुरु ।
विश्वमित्र राजा गाधि के पुत्रराम-लक्ष्मण को धनुर्विधा सिखायी थी ।
शरभंग एक ऋषिचित्रकूट के पास आश्रम ।
सिद्धाश्रम  विश्वमित्र के आश्रम का नाम ।
भरद्वाज बाल्मीकी के शिष्यतमसा नदी पर क्रौच पक्षी के वध के समय वाल्मीकि के साथ थेमाँ-निषाद’ वाला श्लोक कंठाग्र कर तुरंत वाल्मीकि को सुनाया था ।
सतानन्द राम के स्वागत को जनक के साथ जाने वाले ऋषि । 
युधाजित भरत के मामा ।
जनक मिथिला के राजा ।
सुमन्त्र दशरथ के आठ मंत्रियो मे से प्रधान ।
मंथरा कैकयी की मुंह लगी दासीकुबङी ।
देवराज जनक के पूर्वज-जिनके पास परशुराम ने शंकर का धनुष सुनाभ (पिनाक) रख दिया था । आयोध्य राजा दशरथ के कोशल प्रदेश की राजधानीबारह योजना लंबी तथा तीन योजन चौङीनगर के चारो ओर ऊँची व चौङी दीवारों व खाई थीराजमहल से आठ सङके बराबर दूरी पर परकोटे तक जाती थी ।    

लेखक - कमल कुमार राठौर