सोमवार, 31 मार्च 2014

भारतीय नव वर्ष(विक्रम संवत २०७१)की शुभकामनाये

मित्रों कल(31 मार्च २०१४) का दिन क्या आप के लिए कोई महत्त्व का दिन है या रोज की तरह आप इसे एक सामान्य दिन की तरह दफ्तर में उबासी लेती चाय की चुस्कियों, बार में चिकन टिक्का और बियर की ठंढी गिलासों या शाम को सब्जी लाने में व्यतीत करने वाले है..इससे पहले की कुछ और लिखना शुरू करू आप को ३ माह पहले ले जाना चाहूँगा जब 31दिसंबर २०१३ और इसके लगभग २०-२५ दिन पहले से हमने आप ने नव वर्ष की रट लगनी शुरू कर दी और 1 जनवरी की कडकडाती हुई ठंढ में जब घरो से निकलना संभव नहीं होता है सभी इष्ट मित्रों को नए साल  की बधाइयाँ प्रेषित की. मगर मित्रों क्या वो नव वर्ष आप का अपना था?क्या उसमे कोई नवीनता थी? या अब भी हम अंग्रेजो और अंग्रेजी मानसिकता की गुलामी में बाहर नहीं निकल पाए हैं?? हमारी प्राचीनतम और वैज्ञानिक रूप से सनातन प्रणाली में नव वर्ष भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल प्रतिपदा के प्रथम दिन भारतीय नव वर्ष मनाया जाता है..

हमारी वर्तमान मान्यताएं और आज का भारतीय : वर्तमान परिवेश में पश्चिम का अन्धानुकरण करते हुए हम ३१ दिसम्बर की रात को कडकडाती हुए ठण्ड में नव वर्ष काँप काँप कर मनाते है..पटाके फोड़ते है,मिठाइयाँ बाटते हैं और शुभकामना सन्देश भेजते है..कहीं कहीं मास मदिरा तामसी भोजन का प्रावधान भी होता है..अश्लील नृत्य इत्यादि इत्यादि फिर भी हमें ये युक्तिसंगत लगता है..विश्व में हजारों सभ्यताएं हुई हैं और हजारों पद्धतियाँ है सबकी अपनी अपनी. शायद ३१ दिसम्बर की रात या १ जनवरी को नव वर्ष मनाने का कोई वैज्ञानिक आधार हो,मगर मैंने आज तक नहीं देखा. फिर भी ये यूरोप और अमरीका की अपनी पद्धति हैमगर हमारी दुम हिलाने की आदत गयी नहीं आज तकशुरू कर देते है पटाके फोड़ना..विडंबना ये है की क्या कभी आप ने किसी यूरोपियनया या अमेरिकी को भारतीय नव वर्ष मानते देखा है..मैं ये कहना जरुरी समझता हूँ की १ जनवरी को कुछ भी वैज्ञानिक दृष्टि से नवीन नहीं होता मगर फिर भी नव वर्ष होता है..
भारतीय नव वर्ष का धार्मिक एवं सांकृतिक आधार:  
1  ऐसी मान्यता है की सतयुग का प्रथम दिन इसी दिन शुरू हुआ था..
2 एक अन्य मान्यता के अनुसार ब्रम्हा ने इसी दिन सृष्टि का सृजन शुरू किया था..
3 भारत के कई हिस्सों में गुडी पड़वा या उगादी
  पर्व मनाया जाता है.इस दिन घरों को हरे पत्तों से सजाया जाता है और हरियाली चारो और दृष्टीगोचर होती है.
4  मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक आज के ही दिन हुआ
5 मॉं दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ आज के दिन से होता है. हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में(प्रथम नवरात्री) छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैंफिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।
6 महाराज विक्रमादित्य ने आज के ही दिन  राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवनहूणतुषारपारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई।
इस वर्ष पश्चिमी कलेंडर के अनुसार ये वर्ष31 मार्च २०१4 को शुरू होगा..
मित्रों मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति की मानसिक गुलामी पीढ़ियों से हमारे ऊपर हावी है अतः ऐसा संभव है हमारे आपके या मैकाले के मानस पुत्रों के विचार में भारतीय नव वर्ष का सांस्कृतिक और धार्मिक आधार कपोल कल्पित हो तो उस समस्या के समाधान के लिए मैंने भारतीय नव वर्ष के सन्दर्भ में कुछ वैज्ञानिक और प्राकृतिक तथ्य संकलित किये हैं जो अपेक्षाकृत आसानी से दृष्टिगोचर एवं वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है ..
भारतीय नव वर्ष का प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक आधार :  
1 भारतीय नव वर्ष के आगमन का सन्देश प्रकृति का कण कण देता है पुरातन का संपन और नवीन का सृजन प्रकृति का हर एक कोना कहता है. वृक्ष पेड़ पौधे अपनी पुरानि पत्तियों,छालो से मुक्ति पा के नवीन रूप से पल्लवित होते हैं
2 महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दिन-मास-वर्ष और युगादि का आरंभ हुआ है। युगों में प्रथम सतयुग का आरंभ भी इसी दिन से हुआ है। कल्पादि-सृष्ट्यादि-युगादि आरंभ को लेकर इस दिवस के साथ अति प्राचीनता जुड़ी हुई है। सृष्टि की रचना को लेकर इसी दिवस से गणना की गई हैलिखा है-
चैत्र-मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेहनि ।
शुक्लपक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति ।।

भास्कराचार्य ने इसी दिन को आधार रखते हुए गणना कर पंचांग की रचना की जो की विभिन्न ग्रहों,चंद्रमा  एवं सूर्य की गति एवं दिशाओं का उतना ही प्रमाणिकता से निर्धारण करता है जितना आधुनिक सैटलाईट..
3 हमारे हिन्दुस्थान में सभी वित्तीय संस्थानों का नव वर्ष अप्रैल से प्रारम्भ होता है .यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. ठंढ की समाप्ति और ग्रीष्म का प्रारंभ अत्यंत ही मधुर और आनंददायक अनुभव देता है.
4 इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। पेड़ों पर नवीन पत्तियों और कोपलों का आगमन होता है..पतझड़ ख़तम होता है और बसंत की शुरुवात होती है. प्रकृति में हर जगह हरियाली छाई होती है प्रकृति का नवश्रृंगार होता है.
5 आकाश व अंतरिक्ष हमारे लिए एक विशाल प्रयोगशाला है। ग्रह-नक्षत्र-तारों आदि के दर्शन से उनकी गति-स्थिति
उदय-अस्त से हमें अपना पंचांग स्पष्ट आकाश में दिखाई देता है। अमावस-पूनम को हम स्पष्ट समझ जाते हैं। पूर्णचंद्र चित्रा नक्षत्र के निकट हो तो चैत्री पूर्णिमाविशाखा के निकट वैशाखी पूर्णिमाज्येष्ठा के निकट से ज्येष्ठ की पूर्णिमा इत्यादि आकाश को पढ़ते हुए जब हम पूर्ण चंद्रमा को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के निकट देखेंगे तो यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा है और यहां से नवीन वर्ष आरंभ होने को १५ दिवस शेष है। इन १५ दिनों के पश्चात जिस दिन पूर्ण चंद्र अस्त हो तो अमावस (चैत्र मास की) स्पष्ट हो जाती है और अमांत के पश्चात प्रथम सूर्योदय ही हमारे नए वर्ष का उदय है।इस प्रकार हम बिना पंचांग और केलेंडर के प्रकृति और आकाश को पढ़कर नवीन वर्ष को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं। ऐसा दिव्य नववर्ष दुर्लभ है।
ये भारतीय नव वर्ष की वैज्ञानिक प्रमाणिकता ही है जो किसी के नाम का मोहताज नहीं बल्कि वैज्ञानिक गणनाओं से शुरू होता है जबकि सभी नव वर्ष बिना किसी वैज्ञानिकता के किसी धर्मगुरु या प्रवर्तक के जन्म से प्रारंभ कर दिए गए.
7 स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात नवम्बर 1952 में वैज्ञानिको और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गयी । समिति के 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रम संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की । किन्तु
तत्कालिन प्रधानमंत्री पं. नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन केलेण्ड़र को ही राष्ट्रीय केलेण्ड़र के रूप में स्वीकार लिया गया ।आप ही सोचे क्या जनवरी के माह में ये नवीनता होती है नहीं तो फिर नव वर्ष कैसा..शायद किसी और देश में जनवरी में बसंत आता हो तो वो जनवरी में नव वर्ष हम क्यूँ मनाये???
वर्तमान में एक कुप्रथा चली है  मुर्ख दिवस मानाने की वो भी भारतीय नव वर्ष के शुरुवात में और बौधिक
 गुलाम लोग  सबको अप्रैल फूल बनाते हैं.अर्थात अंग्रेजो और पश्चिम ने ये सुनिश्चित कर दिया है तुम मुर्ख हो और खुद के भाई बहनों को नव वर्ष में शुभकामना सन्देश भेजने की बजाय मुर्ख कहो और मुर्ख बनाओ और मुर्ख रहो..इसी का परिणाम है की आजादी के वर्षों बाद भी हमारी बौधिक गुलामी नहीं गयी जिस नव वर्ष को हमे पूजा पाठ और खुशहाली से मनाना चाहिए उस दिन हम एक दुसरे की मुर्खता का उपहास करते हैं..
हम चाहे जितने भी तथाकथित गुलाम यूरोपियन माडर्न हो जाएँ मगर बच्चे के जन्म से लेकर,घर खरीदना,सामान खरीदना,शादी विवाह,मृत्यु या जीवन के हर अवसर पर भारतीय पंचांग पर आश्रित है जो भारतीय नव वर्ष पर आधारित है मगर उसी दिन हम अपने द्वारा अनुसरित की जा रही मान्यताओं का अप्रेल फूल( यूरोपियन इसे फूल इंडियन ही कहते होंगे )उपहास उड़ाते हैं ये कितनी बड़ी विडम्बना है..
चलिए आप सभी को नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें आशा करूँगा की ये नव वर्ष आप सभी के जीवन में अपार हर्ष और खुशहाली ले कर आये..
भारतीय पंचांग महीनो के नाम और पश्चिम में कैलेंडर में उस माह का अनुवाद

चैत्र--- मार्च-अप्रैल,               वैशाख--- अप्रैल-मई,     ज्येष्ठ---- मई-जून,  
आषाढ--- जून-जुलाई,           श्रावण--- जुलाई – अगस्त,

भाद्रपद- अगस्त –सितम्बर,     अश्विन्--- सितम्बर-अक्टूबर, 
कार्तिक--- अक्टूबर-नवम्बर,    मार्गशीर्ष-- नवम्बर-दिसम्बर

पौष--दिसम्बर -जनवरी,         माघ---- जनवरी –फ़रवरी,  फाल्गुन-- फ़रवरी-मार्च

अब क्रिकेट की कुछ क्रिकेट के दीवानों लिए: भारतीय टीम के दो सदस्यों के नामआश्विन एवं कार्तिक भी  हिंदी महीनो के नाम पर है,किसी क्रिकेटर का नाम है क्या भारतीय क्रिकेट टीम में अगस्त सितम्बर या जुलाई ??

नव वर्ष मंगल मय हो...
आशुतोष की कलम से