बाला साहेब ठाकरे अब हमारे बीच नहीं
रहे। ये खबर अप्रत्याशित तो नहीं मगर फिर भी
ये खबर सुनकर ऐसा लगा जैसे बरसों से खड़ा वटवृक्ष जिसकी छाया मे हजारो लोग
पले बढ़े वो अब नहीं रहा। शायद प्रथम बार किसी राजनेता की मृत्यु पर आम जनमानस के
आँसू निकले॥ क्यूकी शायद तमाम विवादों के बाद भी बाला साहब को लोग एक ऐसे
व्यक्तित्व के रूप मे देखते थे जिसकी कथनी और करनी मे कोई अंतर नहीं रहा॥ बात 1960
के दशक की है जब बाला साहब ने फ़्री प्रेस जर्नल की कार्टूनिस्ट की नौकरी छोड़ कर
अपने पत्र "मार्मिक" के माध्यम से सक्रिय रूप से सामाजिक मे कदम रखा ॥
ये दौर तब श्रीमती इन्दिरा गांधी और मजबूत
होते मजदूर यूनियन का था ॥ तब किसी ने नहीं सोचा था की आर के लक्ष्मण के साथ बैठ
कर कार्टून बनाने वाला ये दुबला पतला व्यक्ति हिंदुस्थान की राजनीति और हिन्दुत्व
की विचारधारा मे एक ऐसी अमित छाप छोड़ जाएगा जिसे उसके जाने के बाद भी नजरंदाज
करना संभव नहीं होगा। "आम मराठी मानुष"के मुद्दे से राजनीति शुरू करने
वाले ठाकरे की आलोचना एक क्षेत्रवादी नेता के रूप मे अक्सर होती रही है मगर इस
आलोचना के पीछे कहीं न कहीं ठाकरे की स्पष्टवादिता रही है ॥ वो जैसे थे वैसे ही दिखते
थे वैसा बोलते थे ॥ शायद आज कल के राजनीतिज्ञों की तरह दोगला चरित्र उनके पास नहीं था और यही कारण है की आप उन्हे
या उनकी विचारधारा के समर्थक या विरोधी हो सकते हैं उन्हे नजरंदाज नहीं कर सकते
॥क्षेत्रवाद की राजनीति का आरोप लगाने से पहले हमे वर्तमान राजनीति का समीकरण
समझना होगा जो इससे भी एक सीढी नीचे गिर गया है वो है "जातिगत राजनीति"
। हम भले ही एक राज्य मे हो मगर क्या आज हम आपसा मे जातिगत तौर पर नहीं बटे हैं?
सामना अखबार के माध्यम से अपने विचारो को आम मराठी मानुस तक रखने वाले बाला साहेब ने हिंदीभाषियों से संपर्क बनाने के लिए "दोपहर का सामना" नाम का हिन्दी अखबार भी निकाला॥ बाला साहेब एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होने अपने मनोभावों को शत प्रतिशत अपने वक्तव्यों मे पिरोया था फिर चाहे इन्दिरा गांधी का समर्थन हो ,वाजपेयी का विरोध या हिटलर के भाषणो की प्रसंशा॥
बाबरी मस्जिद गिरने के बाद जब हर
कोई ,चाहे वो भाजपा के राष्ट्रवादी नेता हो या संघ के संचालक, इससे अपने आप को अलग कर रहा था "तब इसी हिन्दू शेर की ये दहाड़ थी की
ये काम मेरे शिवसैनिको का है और मुझे गर्व है इस पर"॥ ये वक्तव्य किस
क्षेत्रवाद का समर्थन करता है ?? बाबरी ढांचा उत्तर भारत मे
था और ठाकरे मुंबई मे ॥ जब अमरनाथ यात्रा पर जेहादियों ने धमकी दी तो कश्मीर मे
उनकी औकात बताने के लिए कोई हिन्दू वीर सामने आया तो बाला साहेब ॥ कभी किसी पद की
इच्छा न रखते हुये हिंदुओं के हृदयरूपी सर्वोच्च पद पर बैठने वाले बाला साहेब का ये था असली
व्यक्तित्व।
बाला साहेब हमारे बीच रहे या न रहे
हिंदुओं की अस्मिता के पुनर्जागरण का अभियान चलाने वाला ये हिन्दू शेर और उसका
आह्वान "गर्व से कहो हम हिन्दू है ,सर्वदा
हमारी अंतरात्मा की आवाज रहेगा और बाला साहेब की हिन्दू हृदय सम्राट की छवि सभी
राष्ट्रवादियों के हृदय मे अमित है...
भावभीनी श्रद्धांजलि ॥
बाला साहब की यात्रा मे उमड़ा जन
सैलाब और वीरान रुकी हुई मुंबई....जो कभी नहीं रुकती थी॥
खाली स्टेशन |
वीरान मुंबई |
आशुतोष की कलम से ...